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" हवा में खुशबू " - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

" हवा में खुशबू "

  • 331
  • 11 Min Read

चित्र आधारित रचना
#शीर्षकः
"हवा की खुशबू"
"या खुदा ये मुझे किस जुर्म की सजा आपने दी है? एक तो बिटिया वह भी डेढ़ टांग की"।
छह वर्ष की राबिया को हिलक-हिलक कर चलती देख हमीदन मायूस हो कर अपनी खोली में बैठी जाफरी को याद कर रही है। जो हमेशा कहा करता था ,
"देख हमीदन इसे हर वक्त तो न कोसा कर। एक दिन यही हमारे बोझ उठाएगी, हुंह... आप तो चला गया। इसे मेरे गले बांध गया। क्या खाक सहारा बनेगी?"।
उसके जाने के बाद मजबूरी में हमीदन को सिविल चौक वाले क्वार्टर में काम करना पड़ रहा है।
दिन बीतने के लिए होते हैं, एक-एक करके बीतते जा रहे हैं।
आस-पास की बेटियों के ब्याह होते जा रहे हैं। उनकी जगह बहुएँ लेती जा रही हैं।
पर लंगड़ी से कौन ब्याह करे?
वह बची रह गयी उम्र के कांटे के साथ घिसटते हुए चलने की खातिर।
हमीदन के काम पर जाने के बाद वह बैठी रहती है सारे दिन यों ही।
यह तो भला हो सलमा बीबी जी का, जो आई तो नयी हैं। पर हमीदन को बहुत मानती हैं।
"आज उन्हीं के यहाँ गश खाकर गिरने को हो गयी थी मैं "। काम पर से लौटी हमीदन राबिया से बोली।
" अम्मी मुझे भी ले चला कर ना अपने साथ बैठे हुए तेरे कुछ काम मैं भी कर दिया करूगीं "।
हमीदन कुछ सोच कर,
"अच्छा ठीक है कल चलना मेरे साथ"।
दूसरे दिन सबेरे उसे लंगड़ा कर चलती देख सलमा बीबी जी ,
" अरे हमीदन ये तेरी बिटिया तो बहुत प्यारी... है क्या नाम है?
"राबिया... क्या कंरू बीबी जी थोड़े पैसे जोड़ लूं फिर हम गाँव चले जाएगें "
"क्यों इतने दिन शहर में रही हो अब वहाँ रह लोगी" मजबूरी है बीबी जी।
बीबी जी राबिया से मुखातिब हुईं ,
"कुछ पढ़ती भी हो?" राबिया ने नजर नीची कर ली। हमीदन हँस पड़ी ,
" मजाक कर रही हो बीबीजी , यहाँ तो अच्छे- भले सड़क पर घूम रहे हैं। इस लंगड़ी को कौन पढ़ाएगा?
हाँ इसके अब्बा रहते तो और बात थी"।
हैरत में डूब गई सलमा इतनी नासमझी।

"क्या किसी ने नहीं बताया तुम्हें आज तक?
कि सरकार कितनी मदद कर रही इसके जैसे विकलांगो की"
" इन जैसों के लिए तकनीकी शिक्षा देने के लिए सहायता केन्द्र खुले हैं"।
और फिर विकलांग कोटे से सरकारी नौकरी भी आसानी से मिल जाएगी इसे।

हमीदन और राबिया हक्की-बक्की हो कर सब सुन रही है।
"अच्छा चलो,ये बताओ इसकी उम्र कितनी है?"
"जी बारह की हो गई"
"ठीक है फिर कल मैं खुद तुम दोनों को ले कर चलती हूँ। देखना एक दिन यह अपने पैर पर खड़ी हो तुम्हें सहारा देगी"।

अंधे को क्या चाहिए आँख! उन दोनों लिए तो यही एक कतरा रोशनी का काफी है।
दूर गगन में सूरज की रोशनी और हवा में कपूर की गंध फैल गई है।

स्वरचित ,मौलिक
सीमा वर्मा

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Sakartmak kahani

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

ah bahut achchi

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

सही है अभी भी जागरूकता लानी जरूरी है👌👌

दादी की परी
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