कहानीलघुकथा
*मुस्कान का मलहम*
" हँसता हुआ नूरानी चेहरा,,, " पोछा लगाती यशोदा को मौज में गाते हुए देख शिवानी पूछ बैठती है, " तूने तो गजब का गला पाया है रे, ऊपर से तेरी ये मस्त मुस्कान। ऐसा क्या याद आ जाता है तुझे कि दीवानी मीरा सी गाने लगती है। "
यशोदा ओठों में पल्लू दबाए शर्माते हुए कहती है, अरे नहीं मेडम, बस यूँ ही गाने से काम हल्का हो जाता है। "
यशोदा घर का सारा काम करती है। घर की सदस्या की तरह ही वह रहती है। बस रात को सोने के लिए अपने टीन के टपरे में जा चूल्हे पर बनी चाय जरूर पीती है। यही सोचते हुए शिवानी, नाश्ता चाय के लिए यशोदा को बुलाती है।
" यशोदा, आज हम दोनों ही हैं, बताओ ना अपने बारे में। तुम्हारे हँसते चेहरे पर ये दाग कैसे ? "
यशोदा अपने आँसू रोकते हुए कहती है, "मेडम, मेरा पति मुझे बहुत प्यार करता था। लेकिन मेरा हँसना उसे पसन्द नहीं था। क्या करूँ मेरा तो चेहरा ही भगवान ने ऐसा बनाया।
बच्चा नहीं होने से भी खुश नहीं था। फ़िर नशे में मुझे मारने लगा। गुस्से में नाखूनों से मेरा चेहरा नोच लिया और,,,,। "
शिवानी द्रवित होकर समझाती है, " अब रो मत। लेकिन,,, तेरा आदमी है कहाँ ? "
" मेडम, फ़िर उसने देस में जाकर दूसरा ब्याह कर लिया। बच्चे भी हैं उसके। मुझे भी कई बार बुला चुका है। सुना है एक बेटी की शादी होने वाली है और कन्यादान मेरे हाथ से करवाना चाहता है। सोचती हूँ शादी का खर्चा भिजवा दूँगी। "
शिवानी कहती है, " हाँ ठीक है, यह तो नेक काम है। पर तू ऐसे ही रह कर अपने जख्मों पर मुस्कान का मलहम लगाती रहना। चल चाय पी पहले। "