कविताअतुकांत कविता
इन्द्रधनुष
उतरा है नभ में इंद्रधनुष
सतरंगी संसार लुभाता
हर्षित हलधर धरा प्रफुल्लित
वन उपवन मौज मनाए
*लाल रंग प्रेम का प्यारा
हरीतिमा, हरा है बिखराए
नभ की ये असमानी आभा
सागर में झलक दिखाए
पीला, सद्भाव स्वरूप सा
मानो बसंत भी शरमाए
केसरिया की बात न पूछो
वन्देमातरम की धुन गाए
बैंगनी सी कलुषता त्यागो
धवल रंग निर्मल निश्छल
विश्व शांति बंधुता बरसाए
ये इंद्रधनुष सबके मन भाए
सरला मेहता