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कुंडलिया छंद - Dr. Rajendra Singh Rahi (Sahitya Arpan)

कविताछंद

कुंडलिया छंद

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कुंडलिया छंद...

आशा हो मन में अगर, देती जीवन शक्ति।
आने यह देती नहीं, मन में कभी विरक्ति।।
मन में कभी विरक्ति, वक्त विपरीत भले हो।
तरह- तरह जंजाल, पड़ा हर-रोज गले हो।।
नहीं डराती रात, दिखे हर ओर निराशा।
देती जीवन शक्ति, अगर हो मन में आशा।।

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

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