कहानीलघुकथा
लघुकथा ...# शीर्षक
" लवगुरु "
बड़ी -बड़ी कजरारे नयनों वाली २१ बर्षीय रेखा अपने घर के बरामदे वाली सीढ़ियों पर अजीब तरह के कशमकश में डूबी हुयी बैठी है ।
कभी सोच रही है पापा से शिकायत करे फिर कभी स्वयं ही देख ले गुरु जी को।
वो स्थानीय कौलेज में बैचलर्स की मेधावी छात्रा है परीक्षा की तिथि घोषित हो गई है।
अन्य सब पेपर्स तो ठीक है पर मैथ्स से उसे थोड़ी एलर्जी है ।
यही देख कर पापा ने कौलनी में ही रहने वाले मैथ्स के एक्सपर्ट रघु सर को बोल दिया है उसे थोड़ा गाइड कर देनें को ।
बस यंही से समस्या की शुरूआत हो गई ।
पापा ने बोला था थोड़ा देखने को रघु सर तो अच्छे से देखने लगे।
उनका ध्यान पाठ से ज्यादा रेखा के सुंदर चेहरा पर ही लगा रहता है।
रेखा उनके पढ़ाए हुए चैप्टर तो बहुत अच्छे से समझ जाती है। पर वो पढ़ाते ही कम हैं। और इधर उधर की बातें अधिक करते।
जब वह उनके घर जाती है।वे टेबल पर बैठे उसके इंतजार करते मिलते।
आज शाम रेखा ज्यों ही कमरे में आई , रघु ने उसके आने के पहले जल्दी से कुर्सी अपने नजदीक खींच ली। लेकिन रेखा ने यह देख कर भी अनदेखा कर दिया कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
" यह लो पानी, थोड़ा सुस्ता लो, फिर खोलना... किताब ! "
रेखा गुरु शिष्या वाली मर्यादा का सम्मान करते हुए उन तीखी नजरों चुपचाप सहन किए जा रही रही थी।
लेकिन आज तो पानी हद से ज्यादा गुजर गया । जब लाईब्रेरी से लाई पुस्तकों के बीच रमानाथ ने छोटा सा पत्र डाल दिया है ।
बस रेखा इसी उलझन में डूबी हुई है।
आखिर क्या करे वो इन दिलफेंक गुरूजी का ?
यों तो वह खुद ही काफी है मामले को उसके सही अंजाम तक पंहुचाने के लिए लेकिन फिर ,
" पापा" उनको कैसे इस सत्य से वाकिफ करा पाएगी ?
काफी सोच विचार कर अपने कशमकश से उबरी रेखा ने वह पत्र सीधे पिता के समक्ष रख दिया और कही,
"यह देखे रघु सर की करतूत मुझे नहीं पढ़ना उनसे।
चिन्ता मुक्त रेखा बहुत खुश है। परीक्षा की तो आगे की आगे देखी जाएगी ।
सीमा वर्मा ©®