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" भेड़ियां " - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

" भेड़ियां "

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#शीर्षक
"भेड़िया "
"आज तो खूब माल मिला है अम्मा के वास्ते दूध का पैकेट भी हो जाएगा"।
कचरे के ढ़ेर से प्लास्टिक चुनती हुई रजनी माथे पर चुहचुहा आए पसीने को मिट्टी सने हाँथ से पोछती हुई सोच रही है।
मुनुआ उसकी फ्राक खींच कर बोला,
"चल... ना...दीदी नहीं तो लाला दुकान बन्द कर देगा "
"अब तो भूख के मारे पेट में चूहे के साथ बिल्ली भी कूद रही"
"हाँ- हाँ चल एक हाँथ से भारी झोला और दूसरे से मुनुआ को पकड़े हुए भागती हुई लाला की दुकान में पंहुच गई ।
लाला दुकान बन्द करने ही जा रहा था कि रजनी को देख उसकी लोलुप आंखे चमक उठी ।
साथ में मुनुआ ?
"ओफ्फ जब देखो तब मुनुआ को चिपकाए घूमती है"
" चल परे हट "
हिकारत से उसकी तरफ देख जेब से दस का सिक्का उछाल दिया
" जा नाटू की दुकान से पूरी खरीद कर खा ले "।
और होठों पर जीभ फेरते हुए रजनी की पीठ पर हाँथ रख ।
"आ जा दुकान के अन्दर ही हिसाब करता हूँ"।
लाला की आंखो में चिरपरिचित चमक देख
सिहर कर नौ वर्षीय रजनी लाला को परे धकेल चीते की फूर्ति से दुकान से छंलाग मार नीचे कूद गयी।
सीमा वर्मा ©®

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Sovhneeye kahani

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

eye opener

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

बहुत सुन्दर लघुकथा

दादी की परी
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