कहानीलघुकथा
#शीर्षक
" शोहदे "
नीना और कविता के किस्से सुनने और सुनाने लायक हैं। दोनों एक ही उम्र की चौदह साल पुरानी उनकी यह दोस्ती न जाने कितने ऐसे दौर से गुजर चुकी है कि मत कहिए।
नीना कविता की सबसे पक्की सहेली दोनों ने फर्स्ट कलास में एक साथ पेंसिल शेयर की थी तब से न जाने कितने सुख दुख शेयर कर चुकी है।
आज कॉलेज में ऐनुअल फंक्शन था तो थोड़ी देर हो गई है। रात होने को आई है
बस से उतर वे दोनों जल्दी -जल्दी कदम उठाती घर तक का रास्ता तय करती हुयी बढ़ी जा रही थीं तभी कानों में आवाज आई ,
" कभी तो किसी की दुल्हनिया बनोगी ... मुझसे शादी करोगी ?
निभा ने कनखियों से देखा वही रोज वाले शोहदे थोड़ी दूरी पर खड़ें हैं ।
कविता की तो डर से घिग्घी बंध गई ...है
डर तो नीना भी गयी है उसने आगे - पीछे देखा गली बिल्कुल सुनसान है लोग ठंड के चलते घरों में बन्द हैं।
फिर भी उसने हिम्मत नहीं छोड़ी और ईश्वर को याद किया।
उनमें से एक लम्बे कद वाला जब बहुत करीब आ गया तो नीना ठिठक कर रुक गई और बिना झिझके पूछ बैठी ,
" क्यों मुझसे मुहब्बत करते हो "?।
छोकरे ने एक आंख दबाते हुए कहा ,
"हाँ "
उसकी हिम्मत बढ़ गई है थोड़ा और नजदीक आते हुए उसने नीना के हाँथ पकड़ लिए,
" जानेमन हम तुम पर मरते हैं " ।
अब नीना के क्रोध का पारा सांतवे आसमान पर पंहुच गया ।
उसने आव देखा ना ताव पैर में से सैंडल निकाली और उसके सर पर दे मारी।
उसे ऐसा करते देख कविता की भी हिम्मत बढ़ गई ।
उसने हांथ में पकड़े बैग से दूसरे छोकरे के सर ,कमर और पैर जहाँ मौका मिला वहाँ लगातार मारती जा रही है।
साथ में चिल्लाने भी लगी ,
" और बता और मारूं या प्रेम का भूत उतर गया ...? " ।
उनके इस प्रकार अचानक टूट पड़ने से छोकरे हतप्रभ हो भागने लगे। वे दोनों बीच में जोर से चिल्ला भी रही हैं।
गली में घरों के बन्द दरवाजे भी शोर सुन कर खुलने लगे है। लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई।
तभी से नीना और कविता की बहादुरी के किस्से सबों की जुबान पर हैं।
इस वेला की सर्दियों की धूप भी नीना और कविता को सुखद ताप महसूस हो रही है।
स्वरचित / सीमा वर्मा