कहानीलघुकथा
#शीर्षक
" मेट्रो रेल "
सितंबर की उमस भरी रात ,
समय यही कोई रात के साढ़े आठ बजे । मैं दिल्ली से गाजियाबाद जाने वाली मेट्रो ट्रेन में खड़ा सीट की तलाश में इधर उधर नजर घुमा रहा था ।
पूरी ट्रेन औफिस से लौटने वाली भीड़ से खचाखच भरी हुयी थी एक भी सीट खाली नहीं थी, मैं परेशान सा इधर-उधर देख ही रहा था ।
मेरे समीप ही एक नवयुवक ,
ना जाने किन परिस्थिति वश उसका चेहरा क्लान्त हुआ जा रहा था और बेहद थकावट की वजह से वह लगभग गिर पड़ने वाली स्थिति में आ गया था ।
वह बार -बार मुझ पर ढ़ला जा रहा था ।
कि तभी एक सुखद और आश्चर्य जनक घटना घट गई ।
महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर बैठी दो स्त्रियां जो बहुत ही कम्फर्टेबल स्थिति में आराम से गप्पे लगा रही हैं।
वे काफी तरोताज़ा और फ्रेश दिख रही हैं
उनमें से एक महिला जो लगभग पैंतीस वर्ष की रही होगी ।
अचानक से उठ खड़ी हुई और उस युवक के हाँथ पकड़ खाली पड़ी सीट पर बैठाते हुए बोली ,
"क्या हुआ भैया बहुत थके हुए लग रहे हो आओ बैठो ,
मुझसे ज्यादा आवश्यकता अभी इस आरक्षित सीट की तुम्हें लग रही है "
यह कह अपने बैग से पानी की बोतल निकाल उसे दे दिए ।
मेरे समेत आस - पास के सभी लोग आश्चर्य मिश्रित हैरानी में डूब गए क्योंकि इतनी दयालुता कम ही देखने को मिलती है😊😊
स्वरचित /सीमा वर्मा