कविताअतुकांत कविता
#शीर्षक
" धरतीपुत्र "
बहुत ही पवित्र रिश्ता है
धरती से किसान का ।
एक किसान बीज बोता
है जब धरती की छाती
फाड़ कर ।
सूखी धरती और बादलों से
भरे आसमान देख
कब रोता और कब हंसता ?
कोई नहीं देख पाता है ,
सिवाय उन ओस की बूंदो
को छोड़ कर जो आशा
जगा जाती हैं चुपके से
रात- बिरात आ कर उसके मन में।
उसके लिए मिट्टी ही पट्टा है
जो ना धूप में पिघलता है
ना पानी में गलता है ।
सवाल बहुत हैं ,
उपमाएं भी बहुत हैं उसके
मुस्कान की ,
यह धरती ही उसका
आधार है ।
कहलाता वह धरती -पुत्र है
सीमा वर्मा /स्वरचित