कवितानज़्म
गुज़रा ज़माना .....
वो दुनिया से आंख चुराके उनसे छुपके आंख मिलाना ...
याद कभी यूँ आ जाता है मुझको मेरा गुज़रा ज़माना....
सब कुछ भूलके खोये रहना ,कुछ ना कहना कुछ न सुन ना...
धून में अपनी मगन यूँ रहना , बैठे रहना कहीं ना जाना ...
याद कभी यूँ आ जाता है मुझको मेरा गुज़रा ज़माना....
घंटों उनसे बातें करना , एहसासों का अपने कहना ...
उनका फूलों जैसा चेहरा , आँखों का उनपे टिक जाना ...
याद कभी यूँ आ जाता है मुझको मेरा गुज़रा ज़माना....
वो पेड़ों की ठंडी-ठंडी छाऊ के निचे बैठे रहना ....
वो पत्तों की सरसराहट और फूलों का टूट के आना...
याद कभी यूँ आ जाता है मुझको मेरा गुज़रा ज़माना....
हर सुबह का रोशन चेहरा ,ढलती शाम का प्यारा घूँघट ....
हर हवा के ठन्डे झोंकों में उनकी खुशबू का आ जाना ...
याद कभी यूँ आ जाता है मुझको मेरा गुज़रा ज़माना....
हर सुबह थी मेरी उनकी , शाम थी मेरी उनके नाम ....
कभी वादे का तोड़ के जाना , कभी वादे की खातिर आना ....
याद कभी यूँ आ जाता है मुझको मेरा गुज़रा ज़माना....
मिलते नहीं अलफ़ाज़ "मुनव्वर" ,क्या करू तारीफ मैं उनकी ...
खुदा रखे उनको आबाद , ग़म का कभी ना आये ज़माना ...
याद कभी यूँ आ जाता है मुझको मेरा गुज़रा ज़माना....
शब्बीर मुनव्वर