Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया - Krishna Tawakya Singh (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

न जाने कहाँ ले जाती ये नइया

  • 128
  • 4 Min Read

न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""

मुझे तुम्हारी तारीफ ही नहीं |
तुम्हारा साथ भी चाहिए |
जिन शब्दों की,जिन भावनाओं की
तुमने तारीफ की,
उसे जमीन पर उतारने के लिए |
अभी जो शब्द बनकर सिमटा है
किताब के पन्नों में |
उसे बाहर निकालना चाहता हूँ |
जो गड़े हैं स्याही की टेढ़ी मेढ़ी आकृतियों में
उसे जमीन पर बिछाना चाहता हूँ |
पर यह कहाँ सम्भव हो पाएगा
बिन तुम्हारे |
ऐसा नहीं कि मैंने कोशिश नहीं की
अकेले ही सबकुछ करने की
पर हो नहीं पाया |
मन में उठते इन शब्दों के तूफानों के बीच
मैं कभी सो नहीं पाया |
कोई कश्ती नहीं, न कोई खेवईया
पता न चले डोलती, उतराती
कहाँ ले जाती ये नइया |

कृष्ण तवक्या सिंह
20.05.2021.

logo.jpeg
user-image
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg