कहानीलघुकथा
#शीर्षक
"प्रेस वार्ता"
"आज तुम्हें दास बाबू ने अपने केबिन में क्यों बुलाया था फिर से शिखा?"
"क्यों पूछ रहें हैं आप "?।
लाचारी में डूबी उसकी आँख में चिंगारी की हल्की लौ जल कर बुझ गई।
" मैंने खुद देखा है उसने तुम्हारी कलाई थाम रखी थी ,
दूसरे से हाँथ से तुम्हारा चेहरा सहला रहा था"।
दफ्तर की हर छोटी बड़ी गलत बात पर आवाज उठाना आनंद के स्वभाव में है।
उसकी जगह कोई दूसरा होता तो चुपचाप आंखें मूंद लेता।
आनंद ने आनन-फानन में बड़े बाबू से शिकायत कर दी।
यह कोई छोटी बात तो थी नहीं ...बहुतों को दास बाबू से बैर साधने का मौका मिल गया।
बात बढ़ते हुए सचिव और फिर प्रधान सचिव तक जा पंहुची।
त्वरित कार्यवाई करते हुए प्रधान सचिव द्वारा घटना की तह तक जाने के लिए शिखा की पेशी हुई है।
शिखा टेम्परेरी इम्प्लाई है।
पेशी के ठीक एक दिन पहले दास ने उसे अपने केबिन में बुला कर बेशर्मी से कहा,
"देखो शिखा,अब या तो यह कह कर कि यह सब तुमने आनंद के बहकावे में आकर किया है उसे झूठा साबित कर अपनी नौकरी बचा लो नहीं तो कोई दूसरी जगह ढ़ूंढने की तैयारी कर लो"।
दास बाबू की धमकी काम कर गई।
अगले ही दिन प्रेस वार्ता बुलाई गई जिसमें यह कह कि ,
" ये समस्त आरोप निराधार और झूठे हैं,
आनंद जी के अनावश्यक दखलअंदाजी
के खिलाफ मैं मान- हानि का मुकदमा दर्ज करवाने वाली हूँ "
यह वक्तव्य दे कर निकली शिखा चोर आंखों से इधर-उधर देखती सबसे कट कर निकल ली।
उसने अपनी नौकरी तो बचा ली।
पर आनंद बाबू के सस्पेंशन और्डर निकल गए हैं।
सीमा वर्मा