कहानीसामाजिक
#शीर्षक
"आशा की किरण".💐💐
अस्पताल के बेड पर लेटी नीरजा की तन्द्रा टूटने को है
"तो क्या वो मर गई थी ",
"वो थोड़ा डर गई , लेकिन नहीं वो सोच पा रही है और जब तक आदमी सोच पाता है वह जिन्दा रहता है" ।
तभी नर्स कमरे मेंं आई , नीरजा थोड़ी सहज हुई ।
"मैं यँहा कैसे" ? निरजा ने याददाश्त पर जोर डाला ।
" गुडमौरनिंग मैम " अब कैसी हैं आप ?
" बेहतर , पर मैं यहाँ कैसे और मुझे कौन लाया" ?
"आप बेहोश थीं मैम , जब आपके पति यहाँ ले कर आए थे"।
नर्स जूस का ग्लास मेज पर रख कर चली गई थी ।
निरजा सो़च मे डूब गई तो क्या उसके पति सुहेल यहाँ उसे ले आए हैं ।
सुहेल उसके पति जिनके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ उपहास की पात्र है नीरजा । खुद नीरजा के लिए भी तो सुहेल भ्रममात्र हैं।
वे दोनों साथ रहते हुऐ भी साथ कहाँ हैं । वो जिन्दा कहाँ थी ? समझौते की जिन्दगी है उन दोनों के बीच।
गहरी तन्द्रा सी छा गई है उस पर , सिर्फ़
साँसों की लय के साथ बीते गत वर्षो की यादें परछाईंयों के रूप मेंं जेहन में तैर रही हैं ।
छोटे शहर की सीधी सादी नीरजा को रूक्मणी देवी अपने हाई प्रोफाइल एवं बिगड़ैल ऐय्याश बेटे सुहेल को बर्बादी के रास्ते पर जाने से बचाने के लिऐ ही बहू बना कर ले आई थीं ।
यद्यपि उन दोनों के बीच उम्र का भी फासला है। फिर भी बचपन से ही मातृहीना नीरजा की सुनने वाला कोई न था ।
अब तक जिन्दगी के खालीपन को वह बागीचे के फूलो से बाते करते हुऐ मिट्टी के साँचे गढ उसमें भावनाओं के रँग भर कर बेचती थी ।
शादी के बाद रूक्मणि देवी ने तो जल्द ही माँ की जगह ले ली थी लेकिन सुहेल ?
सुहेल ने उसे कभी भी अपने समकक्ष नहीं माना था उसकी हाई क्लास सोसायटी नीरजा की मिडिल क्लास वाली सोच से कँही भी मैच नहीं करती थी ।
फिर भी सुहेल के इन झूठे चोंचलो में वह अपने पति को ढूढँती रही थी।
लेकिन हमेशा की तरह उसके हाँथ कुछ भी नहीं आता था ।
उसके साथ रहने पर भी कभी उसका गुनगुना अहसास नहीं महसूस कर पाती है नीरजा ।
और उस दिन तो हद ही हो गई थी जब माँ की अनुपस्थिति में सुहेल ने कई मित्रों के साथ जिनमें लड़कियाँ भी शामिल थीं , घर को ही क्लब बना डाला था ।
उस माहौल में वह अपने को असहाय और असहज महसूस कर रही थी ।आखिर हकीकत की धूप में भ्रम की धुंध कब तक टिकती विश्वास का बुलबुला फूट चुका था आह ...
क्या यही नियति है उसकी ?
सोचती हुई वह कब बेहोश हो गई थी कुछ पता नहीं आँखें खुलने पर अपने आप को यहाँ पाया है।
तभी द्वार पर आहट हुई और उसके कानों में माँ जी की स्नेह सिक्त वाणी सुनाई दी ।
" ये क्या नीरजा तुम्हें तो मैं सुहेल की बेरँग होती जा रही जिन्दगी में रँग भरने को लाई थी , तुम खुद ही रँगहीन हुई जा रही हो "।
कहती हुए उसे सीने से लगा लिया ।
माँ जी की मधुर आवाज उसके कानों में मिश्री की तरह घुल रही है , जरा देखो तो सुहेल की क्या हालत हो रही है ?
यहाँ आने से भी कतरा रहा है , फिर थोड़ा झुक कर हल्के से फुसफुसाते हुए बोलीं
" वेल डन नीरजा , सुबह का भूला शाम को वापस आने वाले को भूला नही कहते बेटी "।
नीरजा फूट कर रो उठी बहते हुए आँसुओं के साथ ही उसके सारे गिले शिकवे भी धुल चुके हैं।, तभी मूंदती हुई आँखों से उसनें देखा सुहेल धीरे धीरे चलते हुऐ नजदीक आ उसके कँधे पर हाँथ रख रहे हैं शायद उन्हें भी अपनी भूल का एहसास हो चुका था ।
नीरजा ने भी मुस्कुराते हुऐ अपनी दोनों बाँहे फैला दीं जिन्दगी का स्वागत करने के लिए 💐💐💐
सीमा वर्मा