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"गंध" - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"गंध"

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#शीर्षक
"गंध"
कमरे में घुसते ही उस मनहूस तीव्र गंध का भभूका नाक में घुस गया।
पिता की असामयिक मृत्यु के कारण बने उस असह्य गंध को अपनी लाख कोशिशों के बाद भी आज तक भूल नहीं पाया हूँ।
पहले लगा कंही बाहर से आ रही है।
सारे खिड़की दरवाजे खोल दिए फिर भी किसी तरह चैन नहीं मिल पाया।
बेचैन हो कर इधर -उधर देखते हुए अचानक खूंटी पर टंगे बेटे के शर्ट पर नजर पड़ी विश्वास नहीं हुआ।
पास जाने पर बेहद घबरा गया मैं
बिस्तरे पर सो रहे बेटे को देख मन व्याकुल हो उठा।
शर्ट उठा बाहर फेंकने का मन हुआ, पर फिर कुछ सोच कर, मशीन में डाल दिया और व्याकुल मन से लाडले के उठने का इंतज़ार कर रहा हूँ।

स्वरचित /सीमा वर्मा

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Bahut achi

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

jabardast kahani

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

बहुत अच्छी लघुकथा

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