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"बस्ते का बोझ" - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीबाल कहानी

"बस्ते का बोझ"

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लघुकथा #शीर्षक
" बस्ते का बोझ"
सर्दियों की दोपहर , अनीता जी लौन में बैठी हुयी मीठी धूप के आनंद ले रही थी। तभी गेट पर स्कूल बस आ कर लगी। जिसमें से
उनका नाती सात साल का बँटू कूदता -फाँदता घर के अन्दर चला गया ।
पीछे - पीछे उसकी मां शिवानी उसका बैग उठा कर चल रही थी ।
अनीता के पास आ कर बोली ,
" देखिए तो माँ इतना भारी बैग मुझे ही भारी लग रहा तो बंटू की क्या हालत होती होगी "?।
अनीता ने पूरे ध्यान से उसकी बात सुन कर मुस्कुरा उठी। और बेटी को प्यार से समझा कर कहीं ,
"शिवानी व्यर्थ की चिन्ता कर रही हो , पहले भी जब तुम छोटी थी तब तुम्हारा भी तो बक्सा हुआ करता था बेटा , जिसमें तुम अपनी सारी पुस्तकें कितने अच्छे से रख कर ले जाती थी याद है तुम्हे"? ।
" बस उसी बक्से की जगह अब बैग ने ले ली है" ।
शिवानी के चेहरे पर यह सुन कर कुछ शांती और सुकून की आभा छिटकने लगी,
" हाँ ममा " अपने बचपन के दिन याद कर उसे भी हँसी आ गई।
और हां तभी अनीता फिर से बोली ,
" शाम में जब बँटू क्रिकेट प्रैक्टिस करने जाता है तब तो बैग से भी भारी या लगभग इसी भार का किट ले कर जाता है उस वक्त तुम्हें भारी नहीं जान पड़ता क्यों " ?
"अपने पुराने दिन याद करो मजे से बस्ता झुलाती झूमती गाती प्रवेश करती थी" ।
"फिर आजकल तो कितने ही जगह स्कूल में ही बच्चों की किताबे रख ली जाती हैं " ।
यह सब सुन शिवानी के भ्रभ का अंधेरा छँट चुका था उसने झुक कर मां के गालों को प्यार किया और बँटू की तरह ही खुश - खुश घर के अन्दर चली गई ।

सीमा वर्मा

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

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Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

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