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"दंगा" - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"दंगा"

  • 199
  • 8 Min Read

# शीर्षक
"दंगा"
अगले दो - तीन महीने में राज्य विशेष के चुनाव होने वाले हैं।
सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर अपनी - अपनी रोटी सेंक रहे हैं।
कल गांधी चौक पर दो गुटों के बीच आपसी मुठभेड़ में बात हाथापाई से बढ़ कर पत्थर - रोड़े बाजी तक आ गई।
जिसके फलस्वरूप तीन मरे और कितने ही घायल हो अस्पताल में इलाज करवा रहे हैं ।
दूसरे दिन नुक्कड़ वाली चाय की दुकान पर ...
दो व्यक्ति आपस में गुफ्तगूं कर रहे हैं ।खद्दर धारी ने पास रखी कुर्सी खींच बैठते हुए दूसरे व्यक्ति जो दिखने .में छात्र लग रहा था , से पूछा ,
"और बताओ क्या हाल हैं तुम्हारे कुछ पता चला"?।
कह कुछ मुड़े हुए नोट उसकी पैन्ट की जेब में डाल दिए ।
लड़के ने कुछ स्पष्ट नहीं किया।
"होगा कोई जो मुझे मारना चाहता होगा " ।
"यह सही है कि मैं इज्ज्त से प्यार करता हूँ लेकिन आप ही बताएं कौन नहीं करता"?।
फिर थोड़ा भावात्मक होने का नाटक करते हुए
" मैं तो दूसरे की इज्जत पर कभी वार नहीं करता " ।
यह सुन नेता जी उसके कंधे थपथपाते हुए चाय वाले से बोले ,
" ए ...दो जी पहले इसे चाय नाश्ता कराओ " और फुसफुसाते हुए पूछे पता चला वे कौन थे"?।
लड़के ने कहा ,
"टेन्शन मत लीजिये ज्यादा देर नहीं लगेगी मैं ढूंढ निकालूँगा "।
नेता जी ने गहरी आवाज में पूछा ,
" फिर अदृश्य का विनाश कैसे होगा इससे निबटने का तरीका"? ।
" शायद नहीं "
" तो फिर ऐसी लड़ाई का क्या फाएदा जो सही समय पर बेकार और निष्फल हो जाए "?
" कभी - कभी आंखों देखे और कानो सुने तथ्यो और प्रमाणो के भी अदृश्य छलावे होते हैं "
लड़के ने कहा।
और चीज सूंघने में माहिर चाय वाला धीरे - धीरे गुनगुना रहा , "
कोई नृप होहिं हमहि का ...।

सीमा वर्मा / स्वरचित

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Samsamyik

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

👍👍😍

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

ओह बहुत अच्छी समसामयिक

दादी की परी
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