कहानीलघुकथा
#शीर्षक
"संवाद हीनता"
उन दिनों मेरा तबादला मुरादाबाद जैसे छोटे शहर से महानगर मुम्बई हो गया था मैं सरकारी नौकरी में हूँ।
अभी अकेला ही आ गया परिवार का पीछे से आना तय हुआ ।
नयी जगह वह भी मुम्बई जहाँ किसी के पास वक्त ही नहीं है।
सप्ताहांत में मुझे अकेला पन काट खाने को दौड़ता।
तो थोड़ी ही दूर पर बने इस रेस्तरां में गम गलत करने आ जाया करता।
उस दिन भी शाम मैं वहाँ अकेला ही बैठा हुआ था मेरी बराबर वाली दो कुर्सियों वाली टेबल रिक्त थी।
थोड़ी देर बाद वे दो व्यक्ति जिनमें से एक की उम्र लगभग ५६ वर्ष और दूसरे की यही कोई ३६ -३७ के बीच की रही होगी।
व
दोनों विपरीत दिशाओं से रेस्तरां में प्रवेश किए।
दोनों ने ढ़ेर सारे खाने का और्डर दिया साथ में शराब की बोतल भी मंगवाई।
फिर चुपचाप खाना शुरु करते हुऐ जाम से जाम टकराए , उन दोनों के बीच अजीब तरह की चुप्पी छाई है।
"मैं देख पा रहा हूँ,
करीब दो -तीन पेग अंदर जाने पर उनकी बातचीत प्रारंभ हुयी,
"आप कहाँ रहते हैं "?
"जी सेक्टर ५२ में "
"अच्छा मैं भी वहीँ से आ रहा हूँ" ।
"किस अपार्टमेंट में" ?
"मैंं गरुर अपार्टमेंट में रहता हूँ "।
"ओह मैं भी वहीँ रहता हूं "
"अरे किस फ्लोर पर "?
"जी १७ माले पर" ।
"हो हो हो हो हँसते हुए आपका फ्लैट नम्बर" ?
"जी २०१ "।
"वाह जी और मैं २०२ में" ।
फिर तो उनकी बातचीत खूब लम्बी चली ।
खाना खाने के बाद वे एक दूसरे की ओर देख हँसते हुए साथ में निकल लिऐ।
मैं उनकी बातें ध्यान से सुन रहा था। यह तो बाद में पता चला ये दोनों बाप-बेटे हैं यंही पास के सोसायटी में अलग-अलग फ्रलैट में रहते हुए अपने कार्य में व्यस्त रहते हैं । और प्रत्येक शनिवार यहाँ आते हैं।
मैं हैरतअंगेज हो सोच में डूब गया हूँ । क्या यही है बड़े शहरों की जीवनशैली?
उनके बीच की संवाद हीनता मेरे सामने एक प्रश्न चिन्ह छोड़ गयी।
रेल की दो पटरियों जैसे साथ - साथ चलते हुए भी अलग -अलग सी।
सीमा वर्मा