कहानीलघुकथा
#शीर्षक
" बीजारोपण "
नागेश्वर कौलनी का क्वार्टर नम्बर २०१ जो हरदम टिंकू और उसके साथियों की खेलकूद से गुंजायमान रहता था।
अब वहाँ मनहूस सा सन्नाटा पसरा रहता है।
टिंकू की माँ पेट से थीं। पिछले दिनों सीढियों से फिसल कर गिर पड़ीं।
और एक अनहोनी जो नहीं घटनी चाहिए थी वही घट गई।
टिंकू , सफेद कपड़ों में लिपटी नन्हीं परी को देख सदमे में आ गया।
तभी से ना कुछ बोलता है, ना ही रोता है।
" घर भर का प्यारा, दादी की आँख का तारा है टिंकू"।
दादी भी उसे यूँ चुपचाप... देख बेचैन हैं।
"तुम्हें हमेशा खुश रहना चाहिए टिंकू क्यूँ कि जब खुश रहोगे तभी तो तुम्हारे साथी भी लहराएगें "
कह कर दादी जबरन उसके हाँथ पकड़ कर बाहर बगीचे में ले आई जहाँ उसके द्वारा लगाए छोटे-छोटे पेड़ जो बराबर हवा के झोंके से झूमते रहते थे।
अभी वे ही उचित रख-रखाव के अभाव में मुर्झाए से उदास लग रहे हैं। कुछ की तो मिट्टी भी उखड़ गई है।
"देखो बेटा जीवन में सुख का मतलब कभी भी दुख को नकारना नहीं है ,
"तुमने कितने पेड़ लगाए जिनमें से सारे तो पनप नहीं पाए"।
"ठीक वैसे ही हमारी परी भी"
कह कर सुबकने लगीं ,
"कुछ फूल कभी-कभी खिलते हैं। कुछ तो सिर्फ एक बार।
और कुछ तुम्हारे जैसे रोज खिलने वाले मेरे बच्चे"।
कहती हुयी आगे बोल नहीं पाईं आंसुओं की धार बहने लगी।
दादी को जा़र-जा़र रोते देख ,
अचानक टिंकू की चेतना जग गई ।नन्हें हांथों से उनके आंसू पोछते हुए बोल पड़ा,
"हाँ दादी आपने ही तो बताया है। हमें सम भाव से सुख के साथ ही दुख भी झेल लेने चाहिए"।
कह कर नीचे झुक गया और जमीन से लगभग उखड़ चले आम की जड़ों पर फिर से गीली मिट्टी चढ़ाने लगा।
सीमा वर्मा ©®