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विचित्र प्रेम - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

विचित्र प्रेम

  • 184
  • 9 Min Read

#शीर्षक
" विचित्र प्रेम "
इन दिनों जगहंसाई के डर से हर समय हेमंत की आंखों में एक कातर वेदना छाई रहती उसका भेद खुल ना जाए इस डर से।
क्योंकि अब उसकी बात निजी ना रह कर जग जाहिर हो चुकी है।
मैं और हेमंत एक ही औफिस में कार्य करते हुए एक घर में कमरा शेयर कर रहने को राजी हुए थे।
तब हम दोनों ही की आमदनी इतनी नहीं थी कि अलग-अलग घर ले परिवार के साथ रह सकें।
यों हमारी ड्यूटी अलग-अलग पाली में लगती थी ।
अगरचे कि घर के एग्रीमेंट पर मेरे ही हस्ताक्षर थे तो अक्सर यह शिकायत मिलती ,
" आपकी गैरहाजिरी में तरह-तरह के आदमियों का आना जाना लगा रहता है ,
एक गोरे, लम्बे बालों वाले लड़के का जिक्र विशेष तौर पर रहता " ।
साथ रहते हुए भी मैं उसके इस विचित्र प्रेम को परख नहीं पाया ।
अचानक एक दिन मेरी नजर हेमंत को उसी गोरे लड़के के साथ खुल कर बैठे हुए पड़ गई ।
जिसे तुरंत ही बहुत सावधानी उसने परे धकेल दिया ।
हेमंत जिसका
" मेरे साथ ही हर वक्त का रहना ,घूमना फिरना ,उठना बैठना था,
मुझ से सतर्क रहने लगा।
हर वक्त सशंकित रहता वह और उसके चश्मे के कांच के पीछे मुझसे दूर चली गई उसकी दृष्टि मुझसे दूर चली गई थीं ।
कि कंही मुझे इसकी भनक न मिल जाए।
अब वह खुल कर मेरे सामने हँस रो भी नहीं पाता। घबराया रहता हर पल कि ज्यादा सुख में या ज्यादा दुख में कुछ निकल ना जाए उसके मुंह से।
लेकिन ऐसी बातें भी कभी छिपती है देर तक ,
जैसे भी हुआ हो मुझे पता तो लग ही गया , फिर अब तो यह कानूनन स्वीकार्य भी हो चुका है ।
लेकिन उसके समलिंगी व्यवहार को परख कर भी मैं उसके प्रति अपना आचरण पहले जैसे ही बनाए रखने में मैं सफल रहा।
हेमंत नौकरी के साथ ही सिविल सर्विसेज एग्जाम की तैयारी भी कर रहा था।
जिसमें उसे मेरे सहयोग की आवश्यकता पड़ती रहती थी ,
हेमंत से दूसरे किसी को भले ही जब- तब चिड़चिड़ाहठ पैदा हो जाए पर मुझे कुछ फर्क नही पड़ता। यह बात उसे आश्वस्त करती।
और इसी बात तथा मेरे व्यवहार में तनिक भी परिवर्तन ना देख , मुझे ऐसा लगा कि वह हीन भाव से खासा मुक्त हो चुका है।

©®

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Naya vichar

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

gud story

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

बहुत जागरूक करती कहानी

दादी की परी
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