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कड़ी धूप में घना साया 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

कड़ी धूप में घना साया 💐💐

  • 241
  • 14 Min Read

#शीर्षक
" कड़ी धूप में घना साया " अंक २
वीरेन सुबह नौ बजे ही दफ्तर निकल जाते और रात गये वापस आते इधर बच्चे स्कूल चले जाते वह सारे दिन बालकनी से उनके आने के इंतजार में बैठी घर के काम निपटाने में लगी रहती आज शिखा ने सोच रखा है। वह आंटी के लिए कुछ अच्छा खाने का बना कर ले जाएगी पर पहले अंकल से पता तो कर ले।
तभी उसने देखा भंडारी अपने घर से निकल चुस्त कदमों से पार्क की ओर जा रहे हैं ।
वह भी झटपट घर में ताला लगा जा पंहुची पार्क में। चारों तरफ हरी-हरी घांस ...देखने से ही आंखों में ठंडक पंहुच रही है।भंडारी उसे देखते ही ,
अरे आओ, आओ शिखा वह जानती है अंकल हर आनेवाले से ऐसे ही खुल कर मिलते हैं। वे वीरेन और बच्चों का पूछ रहे हैं ?
कितने जीवंत इंसान हैं हरको पहचानते और याद करते हैं।
अचानक वह पूछ बैठी, आंटी बाहर नहीं निकलती ?।
"नहीं बेटे वे बेड रिडेन हैं चल भी नहीं पाती उनके सारे काम भी मैं ही देखता हूँ।"
उन्हें लीवर सिरोसिस है और वह भी लास्ट स्टेज में ।"
अचानक खुशनुमा माहौल में दर्द उभर आया यह सुन कर शिखा का मन कैसा तो हो आया ?
कहाँ तो वह सोच रही थी उनसे मिल कर अपने हाँथ से पकाया हुआ खाना उन्हें खिलाने को और कहाँ ये सब ?
"क्या मैं मिल सकती हूँ उनसे ?"
शिखा का जी कचोटने लगा ।
"क्या करोगी उनसे मिलकर वो दुखों का सागर हैं झेल नहीं पाओगी "।
तभी वीरेन की गाड़ी की आवाज सुन कर वह उठ गई ,
मैं चलूँ अंकल ?
नहीं ! और हो हो कर हँस दिए।
शिखा ठिठक कर खड़ी हो गई ।
"ओहो जाओ ,जाओ कंही वीरेन को जोर से बोलने पर खांसी ना आ जाए "
शिखा खुश हो कर खूब हँसने लगी।
" हँसो खूब हँसो हँसती हुयी अच्छी लगती हो बेटे ।"
वह जाने लगी पर महसूस कर पा रही है । पीछे दूर तक अंकल की दुआएं भी साथ आ रही हैं।
उसका जी चाहा वह पलट कर उनके गले लग कर बाप का प्यार महसूस कर ले।
पर ऐसा कुछ कर पाती तब तक देर हो चुकी थी।
फिर भी वह वीरेन से पूछ कर एक बार आंटी से जरूर मिलने जाएगी शायद माँ जैसी ही मिल जाएं ।
यह सोचती हुयी वह बेहद हल्का महसूस कर रही है।
घर जा कर बच्चों और वीरेन को खाना दे कर बालकनी में गयी।
उसका खाने का मन नहीं कर रहा था।
देखा बगल वाले घर में लाईट जल रही है।
वह वापस आ कर किचेन के काम निपटाने में जुट गयी । बच्चे और वीरेन सोने चले गए । पर शिखा को नींद नहीं आ रही है।
पता नहीं क्यों उसका दिल बेचैन हो रहा है। वह फिर से बालकनी में आई सोची ,
"चलो बाहर से देखती हूँ। इसी उधेड़बुन में उसने बगल की खिड़की में झांका वहाँ कुछ हलचल सी दिखाई दी।
वह आवाज लगाने ही वाली थी कि दूर से ऐम्बुलेंस के साएरन की आवाज सुन कर एकबारगी सिहर उठी।
उसका दिल धड़क उठा अनहोनी की आशंका में।
अब वह फिर से ना कहीं ?
"नहीं, नहीं ऐसा कुछ भी नहीं होगा ,ऐसा कुछ भी कैसे हो सकता है ?।
ऐम्बुलेंस आकर बगल में.ही लगी। थोड़ी देर में ही स्ट्रेचर में सर से पैर तक ढ़के हुए भंडारी को ले गए वे लोग।
पीछे - से एक और उसी तरह ढ़के हुए को ला कर रख दिया।
उसका दिल बैठ सा गया। सड़क पर कोई भी चलता-फिरता नजर नहीं आ रहा था।
वह सिसक उठी उसकी आंखे भीग गई आज दूसरी बार उसने माँ बाबा को ... ।
समाप्त
©®

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Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

gud story

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

बहुत अच्छी कहानी ,👌👌

दादी की परी
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