कवितालयबद्ध कविता
तेरे मेरे सपने
काश वो दिन फिर लौट आये,
हम-तुम मिलकर सपनों के।
फिर से सुंदर महल बनाये,
हम तुम मिलकर इसे सजाये।
कबूतरों की तरह गुटरगूं करें हम,
मैं तुम और तुम मैं हो जाएं।
तेरे मेरे सारे सपने सच हो जाएं ,
हम तुम फिर सपनों के महल बनाये।
शोहरत की दुनिया से दूर,
दौलत के अंबारों से हटकर।
मौहब्बत की ईंटों को मिलाकर
विश्वास के गारे से चिनकर।
आओ सपनों का महल बनाये,
इसको मिलकर हम तुम सजाये।
रस्मों रिवाजो से आगे कुछ,
कसमें वादों को भुलाकर।
मैं तुम, तुम मैं से हटकर कुछ,
आज अपने मन की सुनाएं।
मैं कुछ कहूँ ना, ना तुम कुछ कहो,
लब मौन रहे, शब्द माइना खो जाये।
दिल से दिल की बात चले कुछ ऐसी,
होंठ मौन रहे आँखें आईना हो जाये।
समाज की लकीरों से कुछ आगे,
खुद के बनाये खाँचों से कुछ अलग।
कायदों से दूर, वक्त से,कुछ आगे,
दूर कही हम तुम चलते जाये।
उम्र की कलम से कुछ तुम लिखों,
और कुछ हम लिखते जाये।
मौहबत की पाक सुराही मैं हम,
रूहों के शरबत मिलाये।
उम्र से कुछ कतरे समय से मांगे,
कुछ वक्त की चासनी मिलाएं।
कुछ गमों की बूँदे डाले हम,इसकी,
एक बूंद पिये, सदियों की प्यास बुझाए।
कुछ कदम तुम रखो आगे,
कुछ कदम हम बढ़ाएं।
बस यूँ ही चलते रहे हम,
और जिंदगी बीत जाये।
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड(भारत)