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नसीहत - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

नसीहत

  • 142
  • 7 Min Read

लघुकथा
#शीर्षक
"नसीहत"
तुम्हारी बस एक यही आदत मुझे अच्छी नहीं लगती स्मिता।
इजीचेयर पर आराम से बैठे हुए मनोहर जी बोले,
"आखिर तुम्हें रश्मी बहू से क्या नाराजगी है?"
"हर समय उसकी मीन मेख निकालने के बहाने ढ़ूढ़ती रहती हो"
"हाँ-हाँ तुम भी तो सदा मुझमे ही खामियां देखते हो। देखी नहीं हैं ना उसकी कारगुजारियों को इसलिए ऐसा कह रहे हो"।
स्मिता चिढ़ कर कह उठी।
"अब ऐसा क्या किया है उसने?"
मेरी इजाजत के बगैर कामवाली को बिस्तर और रजाईयां उठा कर दे दी।"
"ओह ... भागवान सोचो तो जरा कितनी परवाह है उसे इस ठंढ में किसी की मदद ही तो की है उसने ..."
मनोहर जी खुश हो कर बोले।
"यह घर जितना तुम्हारा...है ,
उतना ही उसका भी तो है फिर इजाजत वह क्यों ले इस छोटी सी बात के लिए"।
करने दो उसे भी अपने मन की।
"ओहो ... बहुत तरफदारी कर रहे हो बहू की"
स्मिता चिढ़ कर बोल पड़ी ।
"शायद सोच रहे हो मेरे इस दुनिया से जाने के बाद रश्मी ही तो देख भाल करेगी... क्यों यही ना?"।
"पर इस खुशफहमी में मत रहना"।
यह तो मैं ही हूँ कि सब करवाती रहती हूँ वरना कौन पूछता है "?
"मैं इधर आँख मूंदी नहीं, कि सारी लापरवाही सामने आ जाएगी"।
अब मनोहर जी और चुप नहीं बैठ पाए।
"बस यही प्रौब्लम है तुम्हारी"
फिर दुखी मन से बोले ,
" बस भी करो स्मिता कुछ तो लिहाज करो,
बहू से दोगुनी उम्र की हो कर भी बराबरी कर रही हो"।
" अभी तो हम दोनो के ख्याल रख रही है
वह।
जिस दिन तंग होकर वह भी करना छोड़ दिया तब की सोच कर तो परवाह करो "।

सीमा वर्मा ©®

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

बहुत खूब

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

वाह प्रेरित करती सुंदर कहानी

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

वाह बहुत खूब 😍😍

सीमा वर्मा3 years ago

जी धन्यवाद

दादी की परी
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