कविताअतुकांत कविता
स्वरचित,मौलिक एवं स्वानुभूत कविता
शीर्षक.. बूंद
मेघों के आंचल से निकली कितनी सारी बूंदें
टप-टप-टप गिर कर मस्ती में रे पत्तों पर कूदें
सोच रही थीं मन ही मन वे काश कहां जाएंगे
क्या कोई अपनाएगा भी या हम खो जाएंगे?
डाली के पत्तों ने अपने आंचल में सहलाया-
उनका तन मन बहलाया दिल से उन्हें लगाया
कुछ बूंदें चल दीं इतराकर दूर समंदर तट पर
मुख खोले थे सीप कई समा गई सब अंदर
मुक्ता बन चमकेंगी सारी रोशन नाम करेंगी
उनके यश की अनुगूंज ही अनुपम काम करेंगी.
रचयिता- डा.अंजु लता सिंह, नई दिल्ली
दूरभाष-9868176767