कविताअतुकांत कविता
एक एक करके
सारे दीपक बुझाता जा
रहा है और
अंधेरों को चीरता
प्रकाश के असीम भंडार का
स्रोत चाह रहा है
किसी प्रेम की राह पर नहीं
यह नासमझ तो
एक काली घुप अंधेरी
प्रकाश विहीन
तंग गली सी
दम घोटने वाली
सुरंग में प्रवेश पा
रहा है
बिना कुछ जाने
सोचे समझे
विचारे
यह अज्ञानी बहुत ही
हड़बड़ी और
तेजी में अपने कदम
आगे बढ़ा रहा है
न मालूम
दिल में क्या सुंदर सपना
पाला हुआ है
कौन सी मंजिल की चाह
है
एक खुले आसमान की
हवाओं की तलाश में
यह पागल तो जमीन के
सारे ओर छोर
सब दिशायें भी पीछे छोड़ता जा रहा है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001