कहानीलघुकथा
# शीर्षक #
" वैलेंटाइन डे स्पेशल अवरोध "
अनुजा और शाश्वत कौलेज में साथ पढ़ते हुए कब एक दूसरे की ओर आकर्षित हुए यह खुद उन्हें भी मालूम नहीं ।
शाश्वत का तो पता नहीं पर अनुजा इससे अच्छी तरह वाकिफ है कि यह संजोग जुट पाना लगभग असंभव है ।
जाति-भेद , वर्ग-भेद को ले वह आशंकित है ।
उसके पिता समाज के सम्मानित धनाढ्य और कहाँ शाश्वत का गरीब , दबे कुचले वर्ग से सम्बंध ।
इसलिए ऐसे लम्हों में वह ज्यादातर खामोश ही रहती है ।
लेकिन आज शाश्वत उसके घर फूलों का गुलदस्ता ले कर पंहुच गया ये तो आज किस्मत से पापा घर पर नहीं हैं ।
अनु पूछ बैठी,
"ऐसे कैसे शाश्वत तुम जानते नहीं हमारा मेल कभी संभव नहीं ? "
क्यों यह भी शायद युवा क्रांति है ?
मुझे मालूम नहीं
तुम्हें खूब मालूम है घर में बैठी अकेली रोती रहती हो। पर स्वीकार करनेसे डरती हो।
शाश्वत ने अनु को नये सिरे से देखा कोई बनाव- श्रृंगार नहीं फिर भी कितनी स्वस्थ्य और प्रफुल्लित दिख रही है ।
अनुजा मुस्कुरा दी शाश्वत उसे हमेशा ऐसे ही मुस्कुराते देखना चाहता है उसने धीरे से अनु के ठुड्ढी को गुलाब के फूलों से स्पर्श करते हुए उसके गोरे कपोलों को चूम लिये ।
" हटो भी" कह अनुजा ने उसे परे धकेल दिया ।
डरपोक कंही की !
क्या ऐसा क्यों कहा ?
" है हिम्मत ? "
तुम मेरी हिम्मत देखोगे बुद्धु कंही के बोल कर हंस दी ।
तुम्भी तो आसान लड़की नहीं हो ।
" सुनो ! " अनुजा ने अपने दोनों बाजुओं में लपेट शाश्वत को जोर से दबाया और अपने होठ उसके होठों पर रख फुसफुसाते हुए बोली , " मोम सा जिस्म तो मेरे पास भी है पर पत्थर सा दिल कंहा से लाऊँ "।
कोई मेरी चपलता पर विश्वास नहीं करेगा शाश्वत सब तुम्हें ही दोष देगें अब इसे मेरी कायरता मानों या... कुछ भी ?
फिर तेजी से हट पलट कर चल दी पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा ।
शाश्वत ने देखा जाते वक्त उसने टेबल पर रक्खे फूल उठा कर सीने से लगा लिये हैं ।
शायद सूरज की रौशनी फैलने लगी है।
सीमा वर्मा