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नन्हीं जान - Champa Yadav (Sahitya Arpan)

लेखअन्य

नन्हीं जान

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"नन्ही जान"

एक छोटा-सा पौधा सींचा था किसी ने। हर एक की नज़र उस पर गईं, पर वो नज़र कैसी? आप ने शायद सोचा होगा-अच्छी नज़र ! पर वो तो(हैवानियत)से भरी हुई नज़र थीं,कि किस तरह उसे उसके ज़मीन से बे-दखल कर दिया जाए, और फिर शुरू होती है उसके कार्यनामें। उस नन्हीं- सी पौधे को उसके कदमों मे गिराने की।उसे तोड़ा जाता है फेंका जाता है,और फिर उखाड़ कर छोड़ देते है किसी ज़मीन पर मिट जाने के लिए। लेकिन वह मिटती नहीं,फिर से खड़ी हो जाती है इस हैवानियत से भरी दुनिया से लड़ने के लिए, और इस बार वह इतने अस्त्र लेकर जन्म लेती है कि कोई छूएँ तो उसके हाथों मे चुभ जाए।

"ले अब छू के दिखा मुझे....... छल्ली न कर दूँ तो कहना"

आखिर क्यों एक मासूम पौधे को लोग अंगार बनने को मजबूर कर देते है ये दुनियाँ। क्या उन्हें मासूमियत अच्छी नहीं लगती? क्या इस निर्दयी दुनियाँ को सिर्फ निर्दयी इंसान ही चाहिए।

ऐ दुनियाँ कँटिली झाडियों से भरी पड़ी है आखिर यहाँ नाज़ूक सी पौधौं का क्या काम। उसे भी अपना रूप बदल कर कँटिली झाड़ियों जैसा हो जाना चाहिए तभी उसकी दुनियाँ सज पाऐगी। नहीं तो हर कोई उसे चुभता ही रहेगा कँटिली झाड़ियों की तरह।

"इन हाहाकारो कि दुनियाँ मे!"

मेरी नन्ही परी न जाने कहाँ छिप गई। क्या कोई उसे फिर से मखमल से भरी दुनियाँ दे पाऐगा।

मालूम नहीं वह वक्त कब आऐगा । और रावण युग कब जाऐगा।"

@champa यादव
25/08/20

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