Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
"पलाश के फूल" - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"पलाश के फूल"

  • 407
  • 12 Min Read

#शीर्षक
"जंगल के फूल "
पण्डित दीनदयाल अखबार के फ्रंट पेज पर छपी तस्वीर को देख भावमुग्ध हो पत्नी को बोले,
" यह देखिए अपनी " रजनिया " को।
फोटो में कितनी अच्छी लग रही है और उसकी आंखें कितनी चमक रही हैं"।
जिसे देख रमा जी बोलीं ओ...ह हाँ प्यारी सी हमारी रजनी।
और पुराने दिनों को सोच रही हैं।
रजनी की माँ उनके यहाँ खाना बनाती थी और रजनी उसके साथ ही आ जाती थी रमा उसे पढ़ख दिया करती और खाना बन जाने के उपरांत उसे गर्म-गर्म परोस कर खुद सामने बैठकर खिलातीं। रजनी घर में आए हुए अखबार पर अपना हक समझ सबसे पहले खोलती थी ,
" आज उसी रजनी की जो अब प्रतियोगी परीक्षा पास कर जिला कलेक्टर बन गई है की तस्वीर अखबार में छपी है। कितनी प्यारी लग रही है ना ।
दोनों पति पत्नी उसे ही देख निहाल हुए जा रहे हैं।
रजनी की पहली पोस्टिंग सुदूर पहाड़ की तलहटी में बसे निहायत पिछड़े इस क्षेत्र ,जो शहरी चमक-दमक से दूर है में हुई है ।
जहाँ के ग्रामीण गरीबी और अशिक्षा के अंधकार में जी रहे हैं ।
फिर भी सामान्य रूप से परिश्रमी ।
रजनी इनकी दयनीयता और सीधेपन से प्रभावित है।
प्रगति की लहर से बिल्कुल अछूते भोले-भाले आदिवासियों के लिए वह कुछ अच्छा करना चाहती है ।
अक्सर टहलती हुयी उनके बीच जा कष्टों को समझ कर दूर करने के यथासंभव प्रयास करती है ।
अभी शाम के चार बज रहे हैं इस वक्त भी वह घूमती हुयी पलाश के घने जंगलों में निकल आई है मानों चारो तरफ आग लगी हुयी हो।
छोटे- बड़े अधनंगे ग्रामीण पुरुष -स्त्री कमर से एक दूसरे को थामें घेरा बांध कर नृत्य कर रहे हैं ।
कौन हैं ये ?
कहाँ से आए हैं ?
कुछ सोंच उनके करीब जा पंहुची ,
ये तो नाचते समय कुछ बोल भी रहे हैं । कितना मधुर लग रहा है यह मानवीय दृश्य जरूर कोई गाना होगा वह विमुग्ध हुयी सुननी लगी ।
अरे देखो फूल खिला रे
लाल-लाल फूल खिला
इस दयनीय दशा में भी उनकी बुलंदी और उत्साह को देखते बन रही है। छोटे -छोटे अंधनंगे बच्चे जिन्हें इस वक्त विध्यालय में रहना चाहिए था। वे शिक्षा की रौशनी से नितांत अंजान नाच गा रहे हैं।
रजनी धीरे-धीरे उनके करीब होती गई ।
उसे अपना बचपन याद आ रहा है।अगर पंडित दीनदयाल उसे ना मिले होते और रमा अम्माजी के वरद हस्त उसके सिर पर नहीं होते तो वह भी इन्हीं की तरह कंही गलियों में खो जाती।
रजनी के माथे पर सोच की लहरें गहरी हो गई ।
चिंतित हो , मन में उनकी सर्वागीण विकास के लिए कृत सकंल्प होने का विचार कर वह वापस लौट गई ।
अगले ही हफ्ते कलक्टर साहिबा के क्वार्टर के विशाल प्रागंण में छोटी तख्ती टंगी हुयी दिखाई दी ,
" रजनी दीदी की पाठशाला "

स्वरचित /सीमा वर्मा
पटना

FB_IMG_1624090609787_1624115198.jpg
user-image
Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Bahut achchi kahani

Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Ahahaha

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

bahut achchi

सीमा वर्मा3 years ago

जी हार्दिक धन्यवाद

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

अहा हा 👌👌👌

सीमा वर्मा3 years ago

हार्दिक धन्यवाद सर

दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG