कहानीलघुकथा
#शीर्षक
"भ्रम"
"देखिए ब्रजेश बाबू ऐसा है कि आप मुझे बस सात लाख कैश और एक स्विफ्ट डिजाएर दे दें ,
फिर आप जब चाहे जहाँ कहें हम बारात ले कर पंहुच जाएगें"।
ब्रजेशजी चुपचाप सुन लिए।
"ओह...क्या कह रहे हैं आप ...? बारातियों का स्वागत कम से कम फोर स्टार में होना चाहिए" ?।
ब्रजेश जी की आंखें चौड़ी हो गईं...।
तभी बिटवा,
"ममा कम्प्लेक्शन के बारे में पता तो कर लिया है अच्छे से"।
ब्रजेशजी हाँथ जोड़ कर,
"माफ करेंगे! भ्रम वश आ गया ,
सरस्वती,अन्नपूर्णा स्वरूपा है मेरी बेटी, लक्ष्मी वह स्वंय अर्जित कर लेगी"।
स्वरचित /सीमा वर्मा