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कठपुतली - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

कठपुतली

  • 388
  • 9 Min Read

#शीर्षक
"कठपुतली"
"देखो मृणाल मुझे इस घर का वारिस चाहिए ,
हमारी अपनी एक एलीट क्लास है और मैं शुद्धता वादी हूँ"।
सासु माँ के रोबदार व्यक्तित्व के आगे मुझे अपना आस्तित्व हमेशा ही खोखला लगा है।
"तुम प्रभास की कमजोरी अच्छी तरह से जानती हो, तो कल से तुम्हें एक संगीत मास्टर शिक्षा देनें आ रहे हैं"।
"अब फूल को अगर खिलना है तो कँही , कैसे और कभी भी खिल सकता है"।
"समझ रही हो ना तुम मैं क्या कहना चाह रही हूँ?"।
कह अति विश्वास से भरी हुयी कमरे से बाहर निकल गईं।
बिना यह जाने कि मेरे मन में उस वक्त क्या चल रहा है?
विवाह की पहली शर्त होती है -- समर्पण और समन्वय जिस पर हम दोनों ,
मैं और मेरे पति प्रभासजी पूरी तरह से खरे उतरते हैं।
वे मेरे चेहरे को देख कर सब समझ जाते हैं उन्हें कुछ भी पूछने की आवश्यकता नहीं होती।
बाकी की चीजें मैं उन्हें बता देती हूँ।
विवाह की प्रथम रात्रि ही मैं इस बात से अवगत हो गई कि ,
"अपनी गृहस्थी की शुरुआत मैंने ऐसे आदमी के साथ की है,
" जो पुरुषोचित गुणों" से वंचित हैं"।
प्रभास जी ने कुछ नहीं छिपाते हुए बेहिचक कह दिया था,
" मृणाल तुम मेरी तरफ से पूर्ण स्वतंत्र हो और जब जो चाहे कर सकती हो,
तुम चाहो तो मुझे छोड़ कर भी जा सकती हो मैं सारी जिम्मेदारी अपने उपर ले लूंगा"।
फिर मैं चाह कर भी कहाँ कुछ कर पाई थी?
"ना ही उन्हें छोड़ पाई ,ना ही परिस्थितियों का तिरस्कार कर पाई"
"अति निर्धन परिवार से मैं और वे उच्च घराने के अमीर,
जाती भी कहाँ और किसके बल पर?"।
खैर...
"मांजी अपनी जगह पर सच्ची हैं"।
"लेकिन मैं भी तो अपनी जगह पर! सशक्त और सबल हूँ"
उनके इशारों पर नाचने वाली कठपुतली तो हर्गिज नहीं"।
मैनें अपने जीवन की डोर प्रभास जी को सौंप दी है।
अब अतिशीघ्र सासुमाँ को अपनी गोद ली हुयी बिटिया उनके उच्च कुल के वारिस के रूप में प्रदान करने वाली हूँ।
पति का स्नेहिल वरद हस्त सदैव मेरे सिर पर है।
स्वरचित / सीमा वर्मा

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Ji bahut achcha lekhan

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

wah gajab ki lekhni 👌👌

सीमा वर्मा3 years ago

जी हार्दिक धन्यवाद सर

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

सुंदर लेखन

सीमा वर्मा3 years ago

बेहद आभार

दादी की परी
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