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खोखले रिश्ते 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

खोखले रिश्ते 💐💐

  • 197
  • 16 Min Read

#शीर्षक
"खोखले रिश्ते "
छोटे से शहर दरियापुर के मनोहर लाल की शादी उनके पिता ने कम ही उम्र में जब वे पढ़ ही रहे थे तभी कर दी थी।
फिर जल्दी ही दो बच्चे भी हो गये।
लेकिन पत्नी शकुन के सयानेपन ,अनुशासन और मितव्ययिता के भरोसे मनोहरलाल अपने अध्यन और चितंन की दुनिया में फिर से लीन हो गये थे।
भाग्य ने उनका साथ दिया मनोहर लाल का चयन सरकारी मुंसिफ के पद के लिए हो गया।
तब उन्हें बड़े शहर का रुख करना पड़ा।

प्रारंभ में शकुन और बच्चे माता-पिता की देख रेख के लिए घर पर ही रह गयी।
कालांतर में फिर कुछ बच्चों के दाखिला अच्छे स्कूल में हो जाने के नाम पर और कुछ सास ससुर की सेवा के नाम पर पत्नी का मन दरियापुर वाले घर पर ही रम गया ।
मनोहर बाबू को अच्छी पगार मिलती।
जिसका मोटा हिस्सा वे घर भेज देते। बीच-बीच में कभी शकुन आ जाती बच्चों को लेकर घूमने फिरने।
उसे अब स्वतंत्र रहने की आदत हो गई थी बच्चों के साथ मजे में कट रही है। पति के पास आने पर उसे बंधन जैसा महसूस होता है।
इधर मनोहर बाबू का भी "परमानंद" के साथ गुजर-बसर मजे से हो रहा है ।
परमानंद के पिता उनके मातहत काम किया करते थे।
उसकी असामयिक मृत्यु के बाद वह बचपन से ही उनके साथ रह रहा है।
मनोहर जी की ही प्रेरणा से वह पढ़-लिख कर उन्हीं के ऑफिस में चपरासी के पद पर नियुक्त हो गया था ।
उसकी शादी भी मनोहर लाल ने अपने ही मातहत की बिटिया के साथ करवा दी है।
सब कुछ ठीक ही जा रहा था मगर उम्र की अधिकता से अब उन्हें परिवार वालों की कमी अखरने लगी है।
रिटायरमेंट में अब कुछ ही साल बाकी हैं।
उन्होंने पत्नी से शहर आने की गुजारिश की पर अब वो नाती-नातिन से भरे-पुरे घर के आराम को छोड़ नहीं आना चाहती थीं।
सो नहीं ही आई खैर ।
अन्य कोई चारा ना देख उन्होंने परमानंद को ही परिवार के साथ अपने यहाँ रहने का न्योता दे डाला ,
" तुम्हें बिना खर्च के रहने को जगह मिल जाएगी और मुझे तुम्हारी बहू के हाँथ का ताजा-ताजा खाना और तुम्हारा सहारा मिल जाएगा" ।
आरम्भ तो भले आवश्यकता से हुयी परंतु, धीरे - धीरे भावनात्मक सम्बंध प्रगाढ़ होते गये थे।
परमा की बहू को वे दुल्हिन बुलाते और परमा के दो छोटे बेटे उन्हें दादा जी कर बुलाते।
जब परिवार बढ़ा तो आवश्यकता भी बढ़ी।
फिर यह सोच कर कि ,
"अब तो बेटे भी यथा योग्य कमाने लगे हैं घर भेजने वाले पैसों में थोड़ी बहुत कटौती करने लगे ।
पत्नी शकुन को यही बात अखर गई।
वे चाहे कुछ भी ना करे फिर भी हिस्से में जरा सी भी कटौती ?
यह उसके बरदाश्त से बाहर थी।
पहले चिट्ठी पत्री लिखी। पर कोई असर ना होते देख वे अपने दोनों बेटों को ले कर पंहुच गई और पति को खूब खड़ी- खोटी सुनाई।
बेटों ने भी अपने चेहरे पर से शराफत का नकाब उतार कर रख दिया था।
बस फिर क्या था।
जो बात छोटे स्तर पर शुरु हुयी वह तुम - तरांग तक आ पंहुची।
अमूमन शांतचित्त वाले मनोहर बाबू क्रोधित नहीं होते हैं।
पर जब परमा और उसकी बहू को आड़े हांथो लिया गया।
और उन्हें निकाल बाहर करने की जिद्द की जाने लगी।तब वे गुस्से से उबल गए।
और भावावेग में उठने की कोशिश करते हुए।
लड़खड़ा कर गिर पड़ने को हुए।
उस वक्त आपसी विवाद के कारण बेटे तो आगे नहीं बढ़े।
लेकिन परमानंद जो वहीं पर शकुन और बेटों के भीषण क्रोध का कोपभाजन बन मूक दर्शक बना हुआ है।
उसने ही भाग कर उन्हें थाम लिया।
और उसके दोनों छोटे बच्चे दादाजी-दादाजी कहते हुए उनके पैर से लिपट कर रोने लगे।
शकुन और दोनों बेटे सटपटा कर चुप हो गए। कहाँ तो वे सोच कर आए थे कि परमानंद को सपरिवार घर से निकाल बाहर करेगें।
पर यहाँ तो बाजी ही उल्टी पड़ गई है।
और मनोहर बाबू !
उन्हें तो खून के रिश्ते खोखले ही नजर आ रहे हैं।

स्वरचित / सीमा वर्मा
©®

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Bahut sunder

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

sachchi kahani

सीमा वर्मा3 years ago

आपका दिली शुक्रिया ,

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

बहुत अच्छी लगी

सीमा वर्मा3 years ago

जी धन्यवाद

दादी की परी
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