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"युद्ध और औरत " - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"युद्ध और औरत "

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लघुकथा
#शीर्षक
" युद्ध और औरत-"
बाहर धूप और धुएं का स्याह अंबार फैला हुआ है ।
अन्दर साबिया फटी-फटी आंखों से अपनी दोनों बेटियों को देख रही है। उसका मन अनमना हो रहा है ना जाने कब तक ऐसा चलेगा ?
हर कुछ कितने अच्छे से जा रहा था शौहर का व्यापार , बच्चियों की पढ़ाई और वह खुद भी तो पेशे से वकील है।
घर बाहर में सामन्जस्य बैठा कर शानदार जीवन व्यतीत कर रही थी।
वह कितनी सुन्दर भी तो है राहतअली उसका शौहर उसपर दिलो जान से फिदा था।
वह खुद भी बेपनाह मुहब्बत करती थी राहत से।
कि युद्ध की घोषणा और अनवरत चलते युद्ध से सब तहस - नहस हो गया।
दो साल से भी लम्बा समय गुजर चुका है उसे इस अंधेरी गली के अन्तिम छोड़ पर बने इस बियाबान पड़े मकान में पनाह लिए हुये । इस वक्त उसे राहत अली की कमी शिद्दत से महसूस हो रही है जो इन झंझावातों को झेल नहीं पाया था। टूट कर बिखर गया ।
साबिया बुझे दिल से ग्लास में रखे पानी को गटागट पी आईने के सामने जा कर खड़ी हो गई मात्र ३४ की ही तो है ।
अभी भी उसकी आंखों की चमक बाकी है ।
कम से कम जरूरतों के सहारे जीते हुए भी उसके चेहरे पर गुलाबी रंगत के निखार बरकरार है।
हालांकि वह बाजारू औरत नहीं है।
लेकिन पेट की आग बुझाने के लिए एक युद्ध ग्रस्त क्षेत्र की औरत को अपना बदन बेचना यहाँ तक कि अपने बच्चों तक को बेचना मुश्किल नहीं लगता ।
हैरत की बात है।
वह अपने- आप को दो हिस्सों में बंटी पाती है एक तो मां के रूप का और दूसरा उस खोई हुई औरत का जो बरसों से अपनी अस्मिता के बल पर बच्चो का पेट पाल रही है ।
उसने प्यार से अपनी बेखबर सोई बेटियों के सर पर हाँथ थपथपा कर उठाया और खुद किचन में चली गई ।
पहले खुद के लिए चाए बनाई फिर नाश्ता खाना तैयार करने में जुट गई ।
तब तक बेटियां भी तैयार हो कर किचन मे ही आ गई ,
" ओह अम्मी आज तो चाय के साथ डबलरोटी भी है "।
और खूब मजे से स्वाद लेने लगी ।
इस बात से पूर्णतया बेखबर।
जिस डबलरोटी को इतने चाव से खा रही हैं वह कहाँ से और किस रास्ते से आ रही हैं ?

सीमा वर्मा ©®

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Sunder wichar

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

gud thaught

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

युद्ध से ग्रसित क्षेत्र का सही वर्णन

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