कहानीलघुकथा
#शीर्षक
खफा आदमी ...
रघुनाथ नाटे कद का दुबला-पतला शहर के नामी गराज में मोटर मेकैनिक , चीजें सूंघ लेने में दीक्षित ।
उस दिन दोपहर में दस्तक चैनल की बड़ी गाड़ी वहाँ आ लगी ।
जिसमें खोजी पत्रकार नीलकांत बरुआ को अकेले ही बैठे चौकन्नी निगाह से इधर-उधर कुछ ढ़ूढ़ते देख रघुनाथ उसके पास आ कर पूछा ,
" कुछ ढ़ूंढ़ रहे हैं सर ? "
नीलकांत सरसरी निगाह से उसे देख बोला
" हां सत्यकथा "
" सत्यकथा ?
वह इधर कहाँ मिलेगी सर मेरे साथ चलो उधर रैनबसेरे में भूख , लाचारी और बेबसी की , रोजगार की तलाश में दर-दर ठोकरें खाने की , पुलिस की हफ्ता वसूली में पिटाई खाने की एक नहीं सैंकडों आपबीती मिल जाएगी ।
फिर मुस्कुराया ,
" एक बात बोलें सर ,
ये चैनल वाले ना कभी सच नहीं दिखाते
यह चमक से भरी दुनिया है , हर बात पर झूठ पोत देते हैं ,
आप सबों को असली दिक्कत का तो पता ही नहीं होता " ।
यह रघुनाथ तो बड़ा सयाना निकला । बौस की घूरती आंख और टी .आर. पी की सोच नीलकांत कांप गया ।
इस बात से बेखबर रघुनाथ अपनी ही रौ में बह चुभती आवाज में पूछा ,
" सच्चा रिपोर्टर क्या ऐसा होता है ?
रघुनाथ अदना सा आदमी इतनी बड़ी हिमाकत !
नीलकांत झुंझला कर,
फिर कैसा होता है ?
" सर आप नहीं जानते लोग क्या देखना चाहते हैं ?
"आप तो बस अपनी झूठी -सच्ची चटपटी खबरों का अफीम चटाते रहते हो " ।
इधर नील के कान में बौस मलय कुमार की संजीदा आवाज गूंज रही है ,
" आप समझ रहे हैं ना मैं जो बताना चाह रहा हूँ ? "
घबराहट में पसीने छूट गए ,
" जो चैनल के मालिक हैं वे तय करेंगे क्या प्रसारित करना है , मैं कौन होता हूँ तय करने वाला ? " ।
बेबस नीलकांत ने आंखों पर काला चश्मा चढ़ा लिया ।
सीमा वर्मा
Email - seema.anjani07@gmail.com