कहानीलघुकथा
#शीर्षक
" नई रोशनी"
सुबह से ही रमिया को उल्टी करती देख कुसुम को शक हुआ उसके हाँथ पकड़ कर ,
" यह क्या रमिया किसका पाप है " ?
रमिया गिड़गिड़ाते हुए,
" अम्मा पाप तो मत कहो जे तो जावेद को वारिस है "
" ओ अच्छा चल अभी बताती हूँ ,
उसे जबर्दस्ती खींचती दनदनाती हुयी बगल वाली गली के आठ घर छोड़
हमीदन के जो कुसुम की पक्की सहेली भी है घर जा उसे ललकारते हुई ,
" देख हमीदन तेरे बेटे ने मेरी बेटी का धर्म बिगाड़ा है वह पेट से है "
हमीदन फुफकार उठी ,
" अच्छा ... मेरे निर्दोष बेटे के अकेले का है तेरी बेटी ने मेरे खानदान का नाश किया उसका क्या जरा अपनी दूध धुली बेटी का भी दोष देखो " ।
" तेरा खानदान और मेरा कुल दोनों ही नाश हुए अब तो हम में से किसी का कोई नामलेवा नहीं बचेगा "
कहती कुसुम और हमीदन हताश हो बैठ गई ,
समाज का खौफ दोनों की आंखों में उतर आया है ।
टप-टप आंसू गिरने लगे।
" कुवांरी के पेट में पाप की निशानी ऐसे भी जिन्दा नहीं रह पाएगी हमें भी जीते जी मार दिया दोनों ने "
कुसुम रोते हुए बोली ,
" ना-ना अम्मा हमारे प्रेम को पाप तो मत बोलो "
जावेद और रमिया जो अब तक चुपचाप थे एक साथ बोल पड़े ।
" तुम दोनों को अपनी फिक्र तो है नहीं हम दोनों मांओ को भी उजाड़ दोगे ? "
खौफज़दा हमीदन बोली ।
" अब जो हो गया सो हो गया इसे ढंकना होगा हमें ,
क्षमा करो दोनों को "
कुसुम ने हाँथ जोड़ दिए।
अगले दिन तड़के ही रौशनी फैलने के पहले दोनों ने शहर जाने वाली बस पकड़ ली ।
दूर क्षितिज के पार नयी रौशनी फैलने को है।
सीमा वर्मा ©®