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"कैदी नं ५०२ " - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"कैदी नं ५०२ "

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#शीर्षक
" कैदी नं ५०२ "
ठन ठन ठन... कैदी सेल की छड़ पर हवलदार के डंडे की आवाज सुन
जेल की दीवार से टेक लगा कर बैठे दीनदयाल बाबू अतीत में विचर रहे थे ,
" पिछवाड़े बित्ते भर की जमीन पर लगा
आम का पौधा अब विशाल पेड़ बन गया होगा,
और सुरभी बिटिया वो भी तो...!
ना जाने क्या सोचती होगी मेरे बारे में?
उसके नाजुक कंधें पर ही तो सारे बोझ आ गए होगें "।
उनकी दबी सी आह,उनका कराहना सब अन्य कैदियों की शोर में दब जाता।
जब कभी चारदिवारी के बाहर के खुले आसमान पर देखते तो हर समय बोलने वाली चिड़ियां भी खामोश दिखती।
कैसे गुजारती होगी वह इन दिनों अपनी माँ और छोटे भाई को लेकर ।
सोचते दीनदयाल चौंक उठे।
" ए चलो उठो' ५०२ ' तुम्हारा समय पूरा हो गया,
चलो उठो, उठो रे बाबा"।
यह नम्बर ही पहचान है ,आज उनकी रिहाई है, पूरे पांच साल गुजारे हैं यहाँ।
उनका अपराध? पाप?
महज इतना कि आफिस के बड़े बाबू के पद पर रहते हुए वे कर्मचारियों की मिलीभगत में मैनेजमेंट के सामने अपनी पूरी ईमानदारी दिखाते हुए आँख मूंद कर चुपचाप नहीं रह सके थे।
ना ही अपने जमीर को धोखा दे कर झूठ बोल पाए थे ।
बस भ्रष्टाचार के आरोप मेंफिर तो उन्हें ही फंसा दिया गया था।
जिसके परिणाम स्वरूप सिसकती पत्नी को हैरान-परेशान सुरभी के भरोसे छोड़ , सिर झुकाए विवश हो चले आए थे।

अआज जब रिहा हो भारी कदम से जेल के गेट खोल बाहर निकले दीनदयाल बाबू ने चारो ओर नजर घुमाई ,
बाहर दूर तक उदास शाम की छांव फैली है।
ठंडी हवा से उनके बदन में झुरझुरी समा गई,
ओह!सीधे खड़े होने के लिए भी ताकत लगानी पड़ रही है।
तभी कंधे पर किसी सुढृढ़ हाँथ के दबाव से गर्दन घुमा कर देखा ,
सुरभी फूलों के हार लिए खड़ी,मुस्कुराती हुई उन्हें थाम रही है।
कितनी सयानी लग रही है ।

सीमा वर्मा ©®

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Roohi Shrivastava

Roohi Shrivastava 3 years ago

Bahut khub

Shekhar Verma

Shekhar Verma 3 years ago

wah bahut achchi

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

अहा हा

Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

अहा हा

दादी की परी
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