कहानीलघुकथा
*सपनों का राजकुमार*
अप्रतिम सौंदर्य, अच्छी नौकरी व सौम्य स्वभाव क्या नहीं था दर्शना में। किन्तु माँ पापा के लिए बेटी एक पहेली बन कर रह गई। एक से बढ़कर एक रिश्ते आते व दर्शना से मिलकर प्रसन्नता जताते। दर्शना भी बेझिझक सबके प्रश्नों का उत्तर देती। सबको आग्रह से चाय नाश्ता कराती।
लड़के के अभिभावकों की आपसी चर्चा भी सकारात्मक संकेत देती।
दर्शना के पापा अंदर आकर कहते," बस ये रिश्ता पक्का समझो। कल से ही शुरू कर दो तैयारियाँ। " किन्तु दर्शना से जब लड़का अकेले में मिलता तो पासे पलट जाते। माँ पूछ पूछ कर हार गई पर दर्शना का जवाब होता , " मुझे क्या पता।"
आज भी एक सर्वगुण सम्पन्न लड़का हर्ष अपने माँ पापा के साथ आया है। पापा ने बेटी को खूब हिदायतें दे रखी है और माँ का मनौतियाँ मानना सतत जारी है।
हमेशा की तरह दर्शना अकेले में मिलती है। सामान्य चर्चा के बाद वह चार शर्तें रखती है, " वह नौकरी नहीं छोड़ेगी, दोनों को अपने सास ससुर को सम्मान देना होगा, बेटा हो या बेटी स्वीकारना होगा और यदि कोई संतान नहीं हुई तो किसी अनाथ बेटी को गोद लेंगे।"
सारी शर्ते सुनकर हर्ष, दर्शना का थामे बाहर आता है। वह दर्शना की शर्तें सुना ऐलान करता है, " मुझे यह रिश्ता मंजूर है।" यह सुनकर दर्शना सोचती है " आख़िर मिल ही गया मेरे सपनों का रणकुमार।"
सरला मेहता