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मंज़िल - Anuj kumar (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

मंज़िल

  • 130
  • 2 Min Read

मंजिले जो दूर हो ग़र तू मजबूर हो........
तो डर को अपनी जीत का दायरा बनाता जा..........
कांटों भरी राह पर तू गुनगुनाता मुस्कराता जा...........
फिर देखना के केसे संग तेरे कारवाँ चलने लगेगा........
मंजिले जो मिलों और कोसों दूर थी..........
हिम्मत जो तेरी बेतहासा मजबूर थी............
दूरिया जो कदमों की छुरीयो से तिल भर की हो जाएंगी.....
जिसे पाना चाहता है ए मुसाफिर वो मंजिल तुझे बदस्तूर मिल जाएगी.....

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

वाह 👌🏻

Anuj kumar3 years ago

Thanks Neha

प्रपोजल
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