कविताअन्य
मंजिले जो दूर हो ग़र तू मजबूर हो........
तो डर को अपनी जीत का दायरा बनाता जा..........
कांटों भरी राह पर तू गुनगुनाता मुस्कराता जा...........
फिर देखना के केसे संग तेरे कारवाँ चलने लगेगा........
मंजिले जो मिलों और कोसों दूर थी..........
हिम्मत जो तेरी बेतहासा मजबूर थी............
दूरिया जो कदमों की छुरीयो से तिल भर की हो जाएंगी.....
जिसे पाना चाहता है ए मुसाफिर वो मंजिल तुझे बदस्तूर मिल जाएगी.....