लेखआलेख
*कली जो खिल भी नहीं
पाई*
एक उभरती आला दर्ज़े की साहित्यकारा,अंकिता भार्गव जी, साहित्य अर्पण समूह की एक मज़बूत स्तम्भ रही है। अचानक आँधी के क्रूर झोंके ने इस जुही की कली को पूर्ण खिलने के पूर्व ही निर्दयता से कुचल दिया इस साहित्यिक बगिया से। कितने अरमान, कितनी उम्मीदें थी कुछ कर गुज़रने की।
कुछ पलों में ही सारे सपने बिखर गए। वह परिवार कितना व्यथित होगा जिनकी एक अजीज सदस्या असमय ही बिछड़ गई।
साहित्य अर्पण परिवार ने भी अपनी एक अति सक्रिय कार्यकर्ता को खो दिया। यह अपूर्णीय क्षति कभी नहीं भरी जा सकती। उनकी रचनाएँ भी एक से बढ़कर एक हैं। लघुकथाएँ, गज़ल कविताएँ आदि के रूप में वे अपनी विरासत छोड़ गईं हैं। बेड़नी, खूंटी पर लटकी वर्दियाँ आदि उनकी याद दिलाती रहेंगी। अश्रुपूरित शत शत नमन।💐💐💐
सरला मेहता
यह क्षति कभी भी नही भरी जा सकेगी 🙏🏻 काश की कोई लौटा पाता हमें अंकिता को वापस। काश की वो कली हमसे दूर ही न हुई होती। बस ये काश छोड़ गई है वो 😓