कहानीसामाजिक
# शीर्षक
"वारिस"
'मृणाल सिंह' , लखीपुर निवासिनी का विवाह हंसापुर के अमीर घराने के प्रभास जी से तब तय हुआ था जब वह मात्र पन्द्रह वर्ष की थी।
और जिसे उसने अपने पिछले जन्म के किसी पुण्य कर्म का फल समझ कर सहर्ष स्वीकार कर लिया था ।
प्यार की पहली शर्त होती है --– समर्पण और समन्वय , तो इस धरातल पर उसका दाम्पत्य जीवन आज भी पूरी तरह इस पर खरा उतरता है।
आज भी उसके स्वामी प्रभास जी मृणाल के चेहरे को देख कर ही उसकी मनस्थिति समझ जाते हैं।उन्हें कुछ भी पूछने की आवश्यकता नहीं होती।
बाकी रही भौतिक चीजें तो उसकी सारी जानकारी मृणाल उन्हें बता दे देती है।
ये तो आज के हालात हैं ।
अब चलती हूँ उन दिनों में जब अप्रतिम सौन्दर्य की मालकिन मृणाल इस बड़े से हवेली नुमा घर की नयी बहू बन कर कदम रखी थी ।
हवा में खुशबू तैर रही थी और मृणाल सज - धज कर कमरे में प्रभास जी का इन्तजार कर रही थी ।
हर चीज की तरह इन्तज़ार के पलों का भी समापन हुआ।
जिसके कुछ ही घंटो बाद एक बहुत बड़े रहस्य पर से पर्दा हट चुका था ।
और वह सीधे आसमान में तैरती हुई यथार्थ के कठोर धरातल पर आ खड़ी हुयी थी ।
बहुत जल्दी ही वह इस बात से अवगत हो गई कि अपनी गृहस्थी की शुरुआत उसने एक ऐसे आदमी के साथ की है जो निहायत गंभीर किस्म के दुखी और गमगीन इन्सान हैं कारण ?
" वे पुरुषोचित गुणों " से वंचित थे ।
ऐसा नहीं था कि परिवार वाले इस से अनभिज्ञ थे वरन् वे तो उनका इलाज करा के थक चुके थे ।
शायद इसी कारण से प्रथम रात्रि में ही उसके किसी काम में बाधा ना डालते हुए उन्होंने मृणाल को स्वतंत्र करने की बात कही थी ।
सीधे -सीधे कह दिया था ,
" कि वह पूरी तरह से स्वतंत्र है और जब जो चाहे कर सकती है फिर चाह कर भी वह कहाँ कुछ कर सकी थी ।
अति निर्धन परिवार से मृणाल और प्रभास उच्च घराने के अमीर ।
वास्तविकता यह थी कि उसे लाया ही गया था हवेली को वारिस देने की खातिर ।
अब फूल को अगर खिलना है तो कंही, कैसे भी और किसी समय खिल सकता है।
खैर उसे न जाने क्यों हर पल यह आभास होता ऊपर से सब कुछ सामान्य रहते हुए भी अन्दर से उसकी गतिविधी को नोटिस किया जा रहा है।
कुछ दिनों के उपरांत एक संगीत के मास्टर साहब उसे संगीत सिखाने आने लग गए थे ।
फिर एक दिन सासु मां उसके कमरे में आ दबी और महीन आवाज में उसे समझाते हुए बोली ,
" मैं चाहती हूं तुम मुझे हवेली का वारिस दो लेकिन मैं शुद्धता वादी हूं हमारी एक एलीट क्लास है धन सम्पत्ति में भी हम कुबेर हैं बुद्धि कौशल में भी हमारा वर्चस्व बना हुआ है।"
"और इस तरह के असंख्य उदाहरण तुम्हें मिल जाएगें ।
"तो बस जरा अपनी आंख और कान खुले तथा जबान का कम इस्तेमाल करना।"
मां जी अपनी जगह पर सच्ची और भोली मृणाल ऐसी बड़ी - बड़ी बातों नहीं जानती थी।
सो चुपचाप बस उनके माँ जी केआगे दोनों हांथ जोड़ दिए थे।
इस वाकये के कुछ ही दिनों बाद ,
मृणाल बाथरूम में उल्टियां कर रही थी और सासु मां बहुत स्नेह से मेरी कमर सहला रही थीं।
हवेली में चारो ओर खुशियां छा गई थी हर कोई मृणाल को हांथों हाँथ ले रहा था।
और मृणाल नीडर और स्वतंत्र हो कर रह रही है।क्योंकि उसके अंदर कोई पाप नहीं है।
प्रभास जी भी संतुष्ट थे मृणाल से।
जो भी हो उसका प्यार सलामत रहे यही प्रार्थना वह ईश्वर से आज भी करती है।
आमीन 💐💐
सीमा वर्मा ©®