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फुर्सत तो मिली - राजेश्वरी जोशी (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

फुर्सत तो मिली

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फुर्सत तो मिली

कोरोना के डर से ही चलो,
जिंदगी में हमें फुर्सत तो मिली।
सबके संग वक्त गुजारने की,
चलो कुछ मोहलत तो मिली ।

सड़को को कुछ राहत मिली,
घर की कुछ रौनकें तो बढ़ी।
बहुत समय बाद घर साथ बैठा,
साथ खाने की फुर्सत तो मिली ।

बच्चों के साथ गपियाते माँ-बाप को,
बच्चों की जरूरते पता तो चली।
बेटे से अपने मन की दो बात करके,
बूढ़ों के चेहरों पर कुछ खुशी तो खिली।

इस मुसीबत के समय में अपनों की,
परिवार की जरूरत पता तो चली।
सबको साथ देखकर बूढे माँ- बाप की,
कुछ सांसें जिंदगी की हैं तो बढ़ी।

बहुत दिनों बाद गाँव लौटे है हम सब,
दोस्तों से मिलने की हसरत पूरी तो हुई।
फिर से सब बचपन में जा पहुँचे आज,
गाँव की सूनी सड़कें फिर से तो हँसी।

बहुत घमंड हो गया था इंसान को आज,
अपनी औकात है क्या आज पता तो चली।
इंसान खुद को भगवान समझ बैठा था,
उन्हें अपनी गलतियों की सजा है मिली।
स्वरचित रचना
राजेश्वरी जोशी,
उतराखंड

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