कहानीप्रेरणादायक
#शीर्षक
सगी बहनें...
अंधेरी रात। साढ़े आठ के करीब बिहार प्रांत के किसी शहर के पास किसी कस्बे में जहाँ शाम में ही रात का सन्नाटा पसर जाता है।
आवाज आ रही है एक सफेद रंग से पुते चार कमरों वाले घर से।
घर की दो बहुएँ हीरा और नीरा जो आपस में सगी बहनें भी हैं। हीरा बड़ी और नीरा छोटी।
दोनों की एक-एक बेटी बड़ी बहन हीरा की बेटी स्वीटी ,छोटी बहन नीरा की बेटी मिठ्ठी।
बड़ें भाई कीआमदनी ज्यादा है।
लिहाजा स्वीटी अंग्रेजी माध्यम के प्राईवेट स्कूल में पढ़ती है।
जब कि मिठ्ठी हिंदी माध्यम के रविंद्र बालिका विधालय में।
स्वीटी को लेने स्कूल बस आती है, जबकि मिठ्ठी पांव गाड़ी से जाती है।
बस आवाज इसी को ले कर आ रही है।नीरा ईर्ष्या वश झल्ला कर पति अनिल से बोल रही है ,
"स्कूल बस न सही मिठ्ठी के लिए एक साईकल ही ला दो जिसे खुद चला कर वह स्कूल चली जाएगी,स्वीटी को देख वह कितना ललचती है "।
"ओह तो यह कारण है तुम्हारी झल्लाहट का,
जानती हो भैय्या की आमदनी मुझसे दोगुनी है"
नीरा चिढ़ कर यह बात मेरी मिठ्ठी कहाँ समझती है,
तुम तो समझती हो!
नहीं मैं भी नहीं ,
अनिल समझ गया बेटी से ज्यादा ईर्ष्या माँ को है।
किसी तरह अगले दिन जुगाड़ कर एक सेकेंड हैंड साईकिल आ ही गई।
अगर स्वीटी की चार फ्राक आती तो मिठ्ठी की एक अवश्य आती ।
दोनों बहनों के बचपन के स्नेह ,प्रेम, और अपनापन भाव की जगह ईर्ष्या, जलन और वैमनस्य ने ले लिया था।
खैर यह तो रही दो सगी बहनों के हाल अब आइए जानते इसके प्रभाव जो स्वीटी और मिठ्ठी पर पड़ी वो देखते हैं।
अब बाल सुलभ भोलेपन को पार कर दोनों चचेरी बहनें कैशौर्य की ओर कदम बढ़ा चुकी हैं।
चाची हीरा की बेटी स्वीटी गजब की खूबसूरत है ,उसके चेहरे पर न सिर्फ माधुर्य बल्कि वह नारी सुलभ कटाक्ष से भी भरपूर है।
इसके विपरीत मिठ्ठी काली ,कद में ताड़ की तरह लम्बी और दुबली-पतली काया वाली।
इसके बावजूद अपनी इस कुरूपता को वह अपनी कुशाग्र बुद्धि से माँ सरस्वती की ओट में छिपाने के भरसक प्रयास करती है।
वह अव्वल नम्बरों से पास होती हुयी बारहवें दर्जे में पंहुच गई है ।
चेहरे पर मलिनता की छाप तनिक भी नहीं है।
एक ही घर में रहती हुई जहाँ स्वीटी की साज -पोशाक भड़कीली वहाँ मिठ्ठी की पुरानी तो रहती लेकिन मलिन नहीं ।
जब कभी मिठ्ठी दर्पण में खुद को देखती है तो ईश्वर पर क्रोध करती है लेकिन रोती नहीं है।
स्वीटी के नित-नये साज श्रृंगार देख क्षुब्ध हो ,
मिठ्ठी और भी श्रीहीन दिखने की कोशिश करती।
नीरा उसकी माँ ईर्ष्या से दग्ध होती रहती है लेकिन मिठ्ठी थोड़ी भी नहीं ।
इसके उलट वह उसे अपने हथियार बनाने के हर संभव प्रयास करती है।
हर तरह के बंधन और बेड़ियों को तोड़ वह मानों स्वीटी को
टक्कर देनें की होड़ में कुश्ती के दांव पेंच सीखती , उंची कूद छलांग लगाती है।
पढ़ने में सदैव लड़कों से आगे रहने की कोशिश करती है ।
और तो और कभी-कभी अध्यापकों की भूल पर चुप हो कर बैठने की बजाए उन्हें भी टोक दिया करती है ।
उसके इस अंहकार पर जब कभी स्वीटी उसे टोकती है।
तब वह जवाब नहीं देती वरन् चुप्प हो कर बैठ जाती ।
लेकिन एक बार तो हद हो गई उसकी सारी सहनशीलता ने उस समय जवाब दे दिए।
जब चाची हीरा के यह कहने पर कि ,
" कुछ तो खयाल रख मिठ्ठी ऐसी शक्ल- सूरत पर कौन वर तुम्हारा हाँथ थामने आगे आएगा?"
ध्यान से सुन फिर बिना आहत हुए मिठ्ठी तड़प कर बोली ,
" चिन्ता मत करें चाची ,
" ईश्वर कुछ लोगों को जन्म ही देता है उनकी परीक्षा लेने के लिए उनके सदैव संघर्ष रत रहने हेतू , आप तो बस स्वीटी की चिंता करो , मैं जैसी हूँ वैसी ही भली " ।
यह कह तेज गति और छंद लय बद्ध कदम से आगे बढ़ गई"।
यह सुन नीरा की बेटी को ले कर उसकी' चिंता ' शायद पहली बार आत्मिक सुख महसूस कर रही है।
उसे लगा,
" वर्षों की तपस्या जिसे मैंनें अपनी नारी सहज ईर्ष्या की होम देते हुए प्रज्वलित किया है पूर्ण होने को है। "
सीमा वर्मा