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चिंता चिता समान है - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

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चिंता चिता समान है

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चिंता चिता के समान*

आत्यधिक चिंता करना यानी साक्षात मृत्यु को न्यौता देना है। अपनी चिता स्वयं ही तैयार करना। बीमार होने पर डॉ हकीम वैद्य भी यही कहते हैं। व्यर्थ चिंता करने से व्याधि ही नहीं बढ़ती है वरन अनेक अन्य समस्याएँ दस्तक दे देती है। चिंता करने से हल निकलने के बजाय अन्य दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं। मूल समस्या गौण होकर नई परेशानी आ जाती है।
मेरा स्वभाव भी कुछ ज़्यादा ही सोचने वाला है। मैं प्रत्येक बात या मसले को बड़ी गम्भीरता से लेती हूँ। शैक्षणिक काल में मैं ऐसी ही थी।
बी ए में मैंने अंग्रेजी साहित्य ले लिया। घर में कोई मुझे मार्गदर्शन करने वाला नहीं था। अंग्रेजी मेरे लिए नया विषय था जो मेरे लिए चुनौती बन गया। घर में सब हिंदी भाषी थे। अभी तक सरकारी स्कूल वाली अंग्रेजी ही रट रुटा के पढ़ी थी। समझ नहीं पा रही थी क्या करूँ। रेन की ग्रामर खरीदी, शब्द कोष बढ़ाया। किन्तु थी तो मेरे लिए पराई विदेशी भाषा।
परीक्षा सिर पर आ गई थी। खूब अच्छे से नोट्स बनाए और जोर शोर से तैयारी आरम्भ कर दी। माँ बेचारी खूब सिर की मालिश करती। रोज बादाम का हलवा खिलाती। देर रात तक पढ़ने से सिरदर्द होने लगा। पढ़ाई के अलावा कोई और काम घर का नहीं करती।
वार्षिक परीक्षा प्रारम्भ हो गई। अंग्रेजी के पेपर के पहले तीन दिन की छुट्टियाँ थी। बस नहाती और एक कमरे में पढ़ने बैठ जाती। छोटी बहनें आकर जबरजस्ती कुछ खिला जाती। अधिक जागने से मेरी आँखें दर्द करने लगी। पेपर के एक दिन पहले से मेरी नींद ग़ायब। आँखे मैं चाहू तो भी बंद नहीं हो रही थी। पूरी रात ऐसे ही निकल गई। सुबह सब परेशान, डाँट भी खाई पर नींद नहीं आ रही थी। फ़िर पापा ,डॉ से नींद की गोलियाँ लाए। मुझे गोली खिलाकर सुलाया। उठने पर कुछ अच्छा लगने लगा। माँ नाराज़ हो बोली, " अब पढ़ लिया सब। अच्छे से खाना खाओ, सो जाओ और चिंता मत करो। मैंने वैसा ही किया और दूसरे दिन अच्छे से परीक्षा देकर आई। और आते ही खाना खाकर सो गई।
तब से मैंने कान पकड़े कि अब चिंता नहीं करूंगी। अच्छा चिंतन करते हुए निश्चिंत रहूँगी।गीता के अनुसार कर्म करो फ़ल की आशा मत
करों। यह अच्छी तरह से समझ में आ गया है कि बच्चे यदि पूरे साल नियमित पढ़ाई करते हैं तो परीक्षा के समय घबराने की ज़रूरत नहीं।
अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखते हुए पौष्टिक भोजन व भरपूर नींद लेना चाहिए। फ़िर सफ़लता अवश्य मिलेंगी। चिंता को चिंतन में बदल दें।
सरला मेहता
स्वरचित
इंदौर

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत अच्छा संस्मरण.. चिन्ता वास्तव में व्यर्थ है. कर्म प्रधान है.

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