लेखआलेख
#25अगस्त२०२०
वार-मंगलवार
शीर्षक- जाने कहाँ गए वो दिन
गाँव का घर,मिट्टी का आँगन,नीम की छाँव,और गर्मी की शाम, सब बच्चे दादी माँ को मधुमक्खी के छत्ते जैसा घेर लेते।फिर खुलता दादीमाँ की पहेलियों,परियों,राजा-रानी की कहानियों का पिटारा।बच्चों की उत्सुकता देखते ही बनती।कोई कहता-मैं बड़े होकर राजकुमार बनूंगा।"कोई जादूगर,कोई सौदागर तो कोई ख़ुद को परियों की दुनिया में ले जाता । बच्चों में उत्सुकता इतनी बढ़ जाती कि वह खुद एक काल्पनिक जगत में खो जाते। नन्हें बच्चों की दुनिया कब बदल गई पता नहीं चला।
हर शाम यही सिलसिला चलता बच्चे दादी माँ को लेकर बैठ जाते। पशु-पक्षियों की प्रेरक कहानियाँ, राजा रानी के दरबारों में घूमती कहानियाँ और कभी खेत -खलिहानों में जीवन ढूंढती कहानियों में छिपी होती थी शिक्षा जो बच्चों में व्यवहारिक और नैतिक मूल्यों को उत्पन्न करती थीं । बदलते वक़्त में संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवार ने ले ली।जिसकी वजह से बच्चों की दुनिया भी सिमट गई। डिजिटल दुनिया के सम्बंधों में प्यार और अपनेपन की वह महक भी समय के साथ- साथ धूमिल पड़ती गई ।अब एक -दूसरे के लिए वक़्त कहाँ?मिलने-मिलाने की जगह वीडियो कॉल ने ले लीऔर दादी-नानी के किस्से कहानियाँ सिमट कर रह गए ख़यालों में ।जाने कहाँ गए वो दिन?
मौलिक
डॉ यास्मीन अली।