कवितालयबद्ध कविता
कभी भी नही मरूंगी मैं
कभी भी नही मरुँगी मैं ,
सूरज की किरणों में मिल जाऊँगी।
समुद्र की भाप में उठकर,
आसमान के गले लग जाऊँगी।
रिमझिम बारिश की बूंदों में बरसकर,
मैं रोज पृथ्वी में मिलने आऊँगी।
हरा भरा पृथ्वी का आँचल बनकर मैं,
सबके आशागीत बन जाऊँगी।
मिट्टी में बीज बनकर नित मैं,
आशा की फसल उगाऊँगी।
निराशा का अंधकार मिटाकर,
जीवन का मधुर राग सुनाऊंगी ।
बच्चे की भोली हँसी में ,
रोज ही मैं खिलखिलाऊँगी,
ओस की बूंदों मैं ,मोती सा बनकर,
रोज ही चमकती जाऊँगी।
नदिया के जल में बहती,
चंचल बाला सी लहराऊंगी।
सूरज की किरणों में बैठकर ,
मैं रोज तुमसे मिलने आऊँगी।
कभी भी नही मरुँगी मैं,
मैं तुममें अमर हो जाऊँगी ।
सर्दी, गर्मी, बसंत, पतझड़ बनकर,
सबको नये गीत सुनाऊंगी।
धरती की सांसे बनकर मैं,
तुम सब में बस जाऊँगी ।
सुंदर ख्वाबों की दुनिया सी मैं,
तुम्हारी आँखों में घुल जाऊँगी।
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड