Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
यादें ना जाए - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

यादें ना जाए

  • 292
  • 6 Min Read

*यादें न जाए*

" अरे वाह विभु! आज सुबह सुबह चित्रकारी, दिखाओ जरा क्या बनाया है? ओहो ये तो तुमने,,, दादाजी का गाँव ही बना दिया।" बेटे की तारीफ करते निहाल सीधे अपने गाँव ही पहुँच गया, " वह खप्रेल का मिट्टी गोबर से लिपा घर, सामने आंगन। तुलसी का क्यारा जहाँ माँ भजन करते सुबह शाम दीया लगाना नहीं भूलती। बाबा, सूरज निकलते ही देचकी ले बाड़े में जाते, गोरा गाय रम्भाने लगती। बछड़ा दौड़कर दूध पीने लगता। फ़िर बाबा दूध दुहते दुहते मेरे मुँह में भी गर्म गर्म धार डाल देते। "
"ये क्या रट लगा रखी है कि विभु को भी गोरा का दूध पिलाओ बाबा। हम गाँव में नहीं मुंबई में हैं। आज बिजली नहीं है, पीने का पानी एक बूंद भी नहीं है। " चाय का मग थमाते उत्तरा कहती है।
निहाल को फ़िर गाँव याद आ जाता है, " उत्तरा, माँ पता सवेरे का दूध चाय निपटा सर पर बटलोई गागर रख सहेलियों के साथ कुए से पानी लाती थी। मैं भी छोटी बाल्टी ले जाता था। "
विभु ताली बजाकर कहता है, " चलो न पापा गाँव, मैं भी पानी भरने जाऊंगा। और गोरा की गर्म धार भी पीउँगा। "
उत्तरा को तैयारी करते देख निहाल पूछ बैठता है, " मायके जा रही हो ?" उत्तरा हँसती है, "आपके मायके जा रही हूँ, आप दोनों को चलना है?
सरला मेहता

logo.jpeg
user-image
Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर

दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG