कविताअतुकांत कविता
मैं तन्हा हूं
पर खुश हूं
सजा लेती हूं
खुद को और
घर को भी
महका लेती हूं
फूलों से
और प्यार की
खुशबू से
खोल लेती हूं
घर की खिड़की
हवा को अंदर आने
देती है
इसे देख नहीं सकती
पर इसके स्पर्श से
रोमांचित होती हूं
घर के बाहर खड़े
फूल पत्तों से लदे
एक पेड़ को देख लेती हूं
इसे अपना समझ लेती हूं
मैं अपने
चारों तरफ फैली
फिजा की हर चीज को
अपना समझती हूं
इस अपनाहट के
खुशबू भरे
महकते अहसास के
कारण ही
मैं तन्हा हूं
पर बिना तन्हाई के
खुशी खुशी
जी लेती हूं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001