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सपना सपना ना रह जाये (कविता) - Shiva Prasad (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

सपना सपना ना रह जाये (कविता)

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डा. शिव प्रसाद तिवारी "रहबर क़बीर ज़ादा"

सपना सपना ना रह जाये
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वह एक पिता है।
बहुत ख़ुशी होती है उसे,
जब उसका बेटा उसे पापा जी कहता है।
और ज्यादा ख़ुशी होती है,
जब वो पप्पा कहता है।

उसका बेटा स्कूल में पढ़ता है,
लेकिन वह-
कक्षा में प्रथम स्थान नहीं पाता।
और वह-
कक्षा में प्रथम स्थान पाना चाहता है।
उसे कैंसर की बीमारी है,
वह किसी को नहीं बताता,
राज को राज ही रखना चाहता है।
सोचता है शायद यह एक धर्म है,
शायद यही धर्म है।
कैसर होने का दर्द वह अकेले ही सहता है।
जाँच भी नहीं कराता है,
सोचता है कि-
जाँच हुयी तो कैसे छिपा पायेगा।
बात जो बन जायेगी,
बात जो बनी तो बात आगे बढ जायेगी।
बेटे को पता लग जायेगी।
बेटे को पता लगा-
तो उसकी प्रगति रुक जायेगी।
फिर वह कक्षा में प्रथम कैसे आयेगा।

वो एक पिता है।
बेटे को-
कुछ जो बनना था,
बेटा कुछ बन गया है।
कुछ, किसी की मंज़िल नहीं होती।
उसे कुछ और जो बनना है।
उसे कैंसर है।
बेटे को नहीं बताता,
बेटे का बता नहीं सकता।
बेटे को पता चला तो वो यहीं रुक जायेगा।
उसकी सेवा में लग जायेगा।
बहुत कुछ बनने का सपना-
सपना ही रह जायेगा।

वो एक पिता है।
उसका बेटा फ़ौज में है।
फ़ौज में जंग जारी है,
फ़ौज यानि जंग।
फ़ौज है तो जंग है,
फ़ौज में तो जंग जारी ही रहती है।
उसे कैंसर है।
बेटे को नहीं बताता।
बेटे को बता नहीं सकता।
बेटे को जो पता लगा-
तो वह विचलित हो जायेगा।
जंग में लक्ष्य चूक जियेगा।
सब कहते हैं,
सब सच ही तो कहते हैं।
जो जीता वही सिकंदर।
लक्ष्य चूका तो-
बेटा सिकन्दर नहीं बन पायेगा।
सपना सपना ही रह जायेगा।
सपना सपना ना रह जाये,
सपना पूरा हो।
सपना सपना ना रह जाये,
सपना पूरा हो।
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