Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
सार्थक दाम्पत्य... - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

सार्थक दाम्पत्य...

  • 130
  • 16 Min Read

शीर्षक
सार्थक दाम्पत्य ...

अनुराधा तीन बहनों में सबसे छोटी है और इसी वजह से पिता की दुलारी भी ।
बड़ी दो बहनों के विवाह जल्दी ही सम्पन्न हो गए और अब तीसरी अनुराधा के विवाह की बात पत्नी द्वारा छेड़ने पर पिता वासुदेव नारायण प्रायः मौन धारण कर लेते हैं ।
अनुराधा की परम इच्छा पढ़ कर वकालत करने की थी।
मानों इसीलिये पिता -पुत्री के बीच में मूक समझौता भी है ।
एक दिन तो माँ ने कह दिया ,
" पहले ब्याह कर दो फिर चाहे पढ़ती रहे सारी उमर "
उस दिन जैसे मां की जिह्वा पर साक्षात सरस्वती विराजमान थीं ।
उसके कुछ दिनों बाद ही पिता को घातक दिल का दौरा पड़ा जिसमें ना सिर्फ पिता के ही प्राण गये थे खुद मेरे सपने भी निर्जीव हो चूर- चूर हो गए थे ।
आंखो के सामने फैला था घना अंधकार एक अनंत शून्य ।
फिर सब कुछ यन्त्रचलित सा घटता गया।
पिता की तेरहवीं के सवा महीने बीतते ही अनु का विवाह बूआ द्वारा आनन- फानन में उनके दूर के रिश्तेदारी की जिठानी के बेटे मनोहर जी से तय करवा दी गई ।
मां तो पहले से ही विवाह ऋण से मुक्त हो जाना चाहती थी ।
और अनु विद्रोह करती भी किसके बल पर पिता का स्नेही वरद हस्त तो पहले ही उठ चुका था ।
विवाह की मंगल बेला में ही मैं पति की अधिक उम्र , अधूरी पढ़ाई एवं चलती दुकान से उसके नफा- नुकसान की नाप - तौल करने वाले मनोहर जी के बारे में सब जान गई थी
यह सब मेरे हृदय में भावी दामपत्य जीवन के प्रति नैराश्य के भाव जगाने मे सहायक हुए थे ।
नया घर, नये लोग तथा नया जीवन पर मन में कोई उत्साह नहीं सिर्फ उदासीनता ।
फिर आई प्रथम मिलन की रात्रि दिन भर के अनवरत विधी व्यवहार से थक कर चूर हो रही अनुराधा सर से पैर तक गहनों से सजी गुड़िया की तरह पलंग पर बिछे चादर की सिलवटें सहेजती हुई अजीब सी बेचैनी और घबराहट में महसूस कर रही है
उसकी परिमार्जित रुचि और मनोहर जी के ग्रामीण संस्कार ,
सोच के स्तर पर कितना तालमेल बैठ पाएगा यही उसकी चिन्ता के कारण बने हुऐ हैं ।
उसे जोरों से चाय की तलब महसूस हो रही है।
तभी दरवाजे पर आहट महसूस कर चेहरा पीछे घुमा कर देखा मनोहर जी हाँथ में चाय से भरे ग्लास लिए खड़े हैं ,

" लीजिए आप चाय तो पीती होगीं तिरछी नजरों से संकोच में डूबी अनु को देख कर कहा " ।
" मुझे बड़ी दी से विदा के समय आपके इस शौक के बारे में जानकारी मिली थी।
अनु की आंखो में कृतज्ञता के अस्पष्ट से भाव छलक उठे।
वह पलंग के सहारे खड़ी हो ससंकोच मनोहर जी को देख रही है ।
उसकी सारी रुष्टता और उदासीनता पल भर में गायब हो चुकी थी ।
सहसा पूछ उठी ,
" आप नहीं पियेंगे ?
अपना प्याला भी ले आइए पत्नी का सहज अनुरोध " ।
मनोहर जी नयी सुखद अनुभूति से भर गये ।
वे स्वभाव से नरम और मीठे हैं ।
ज्ञान की गंगा ,प्रेम की निर्मल धारा से मिल जीवन की स्वच्छंद निर्झरिणी में बहने को तैयार है ।
एक वह दिन , और फिर आज तक अनु और मनोहर जी में जो सामंजस्य बैठा तो उन दोनों ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा ।
जिन्दगी की गाड़ी। समय की पटरी पर अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती गई ।
मनोहर जी के सहयोग से अनु ने अपनी छूटी पढ़ाई पूरी की ।
हर दिन , उसके जीवन की पाठशाला में नये अध्याय जुटते चले गए ।
पिता की मृत्यु से आए उसके जीवन के खालीपन को मनोहर जी कभी अपने नरम तो कभी गरम स्वभाव से पाटने के भरसक प्रयास करते ।
अनुराधा भी उनके धैर्य पूर्ण व्यवहार से सुखी दाम्पत्य जीवन के
' कथ्य और सत्य ,को जानने में सफल होती जा रही थी ।
उसने अपने बच्चों को अपने मन मुताबिक गढ़ा है ,
अब तो उसके बालों में चांदी के तार नजर आने लगे हैं ।
और मनोहर जी ,
वे अपनी हास्य भरे प्रफुल्ल स्वभाव से उम्र के फासले को पाटते हुए लगन और प्रेम से पोषित बगिया को निहारते नहीं अघाते हैं ।

स्वरचित / सीमा वर्मा
©®

FB_IMG_1621260400387_1621269014.jpg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG