कविताअतुकांत कविता
सुकून
एक तेरा सफ़र, एक मेरा सफ़र,
एक तेरा जुनून, एक मेरा जुनून,
प्रतीत हुए कुछ इस तरह,
थे अलग जैसे कभी नहीं,
खामियां हमारी कुछ ऐसे घुल गयीं
अब क्या तुझमें कमी, क्या मुझमें कमी,
ढूंढा था जिसे,मिला वो कहीं नहीं
देखा जो सबके पास,लगा मुझे वो मिला नहीं
भटके फिरे बहुत मग़र,
हाथ भी जब कुछ लगा नहीं,
बैठ गए तब सब छोड़ कर,
लगा रोक लगा दे इसी ख़ोज पर,
तभी सामना हुआ एक से,
था जो हुबहु मुझ सा,
रोशनी में जब देखा उसे ध्यान से,
अक्स दर्पण में वो मेरा ही था,
ढूंढ़ने निकले थे जो तुझे...ओ सुकून,
अक्स में पाया वो था....
बस तू ,तू और तू |
✍️श्वेता निम्बार्क
मौलिक, स्वरचित