कहानीप्रेरणादायक
#शीर्षक
दोजख़ सी हवेली...
"नानी उठिए... , उठिए... ना... यह क्या बड़बड़ा रही हैं?
आप मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा है"।
"नहीं... नहीं...इसे मत ले जाओ इसे छोड़ दो,
कातर आवाज में उँहँ ...उँहँ..." की आवाज में गिड़गिड़ाती हुई ।
रात के अंधेरे में भी बंद दरवाजे के बाहर से आती रौशनी में भय से कांपते नानी के चेहरे देख उसे झकझोर कर उठा रही है सुंगधा।
सुगंधा जब तीन वर्ष की थी उस समय ही माँ गुजर गई थी।
पिता की तबादले वाली नौकरी थी,
शायद इसी कारण से नन्हीं सुगंधा की देखभाल करने में उन्हें अक्षम जान ऊसकी नानी उसे अपने पास ले आईं थी।
यों तो उसके शहर वाले घर तथा नानी के कस्बे वाले विशाल हवेलीनुमा घर के बीच की दूरी मात्र एक घंटे की है।
पर आज भी उस कस्बे का मिजाज जरा अलग सा है।
शहर की हवा का झोंका तो मानों छू कर भी नहीं गया है।
सुगंधा का लगाव अपनी नानी से बहुत है।
उसने माँ की जगह नानी को ही देखा है ।
यह उन दिनों की बात है जब सुगंधा छोटी थी नानी की गोद में सर रख कर तब तक कहानियां सुनती जब तक उसे नींद नहीं आ जाती।
धीरेधीरे वह बड़ी हो गई है।
लेकिन अभी भी नानी का नींद में भटकना और हर बार कारण पूछे जाने पर उनका घबरा कर टाल जाना बदस्तूर जारी है।
लेकिन अब और नहीं वह इस बार जिद ठान कर बैठ गई है ।
यह देख आज नानी बोलीं,
" ठीक है यों तो मैंने मरने तक की कसम खाई है फिर भी तुम्हारी खातिर"।
सुगंधा ने महसूस किया ,
नानी की आवाज भर्रा गयी और चेहरा दर्द से भर गया है।
" इतने सालों तक इस आग को अपने अंदर लिए हुए जी रही हूँ सुगु आज तुम्हें पूरी सुनाऊंगी "।
तब मैं शादी कर के नयी-नयी ही आई थी। बहुत कठिन और कड़े रिवाज थे इस हवेली और उससे जुड़ा है वह काला अध्याय।
लड़कियों के जन्म के साथ ही उन्हें हवेली के पीछे ही बसवाड़े में फेंक देने की ।
"रहने दो नानी अब मत सुनाओ आगे..." सुगंधा लगभग सब समझती हुयी ,
" मैं तुम्हें दुखी नहीं करना चाहती "
लेकिन नानी अब अपनी रौ में आ चुकी थीं।
" उस रात को मैं भूल नहीं पाती सुगु हर बार की तरह एक तूफानी रात , मूसलाधार बारिश और साएं-साएं चलती हवाएं।
इसके पहले मेरी जनी दो को मुझे गोद में लेने के पहले ही उनके पिता ,
तेरे नाना कपड़े में लपेट छत से पीछे की बसवाड़ी में फेंक आया करते।
इस बार प्रसवगृह में चीखती-चिल्लाती मैं अपनी तीसरी संतान को पृथ्वी पर लाने की हिम्मत नही जुटा पा रही थी ।
ना जाने क्यूँ इस बार एक अनजानी सी सिहरन और बेचैनी मन में घर कर रही थी।
क्या हुआ था उस रात को नानी ?
अपनी बेचैनी और नहीं बर्दाश्त कर पा रही सुगंधा टोक पड़ी।
" हाँ...तो फिर सुनो"
सुगंधा के नर्म हाँथ अपने हाथों में लेकर नानी बोलीं ,
"वह भी कोई भूलने वाली रात है?
वैसी ही भयंकर बारिश वाली रात के यही कोई ग्यारह-बारह बज रहे होगें"
तेरे नाना तीसरी को फेंकने के लिए भारी कदमों से ज्यों ही खिड़की खोल नीचे देखे?
तो उनकी नजर दो अत्यंत खूबसूरत परियों जैसी पोशाक पहने लड़कियों पर गयी ।
जो शायद अदृश्य शक्तियां थीं , जिन्होंने हाँथ उपर किए हुए थे और विचित्र से स्वागत वाले इशारे कर रही थीं ।
मानों तीसरी जनी को अपने पास बुला रही हों।
तभी अचानक आए हवा के झोंके से हाँथ में पकड़े गठरी के चेहरे से कपड़े का आवरण उड़ गया और
भय से सफेद हुए तेरे नाना की नजर
उस नर्म ,गोल ,गुलाबी और फूल से चेहरे पर जा पड़ी जिसे अगले ही क्षण वे उन लड़कियों के झुंड में शामिल करवाने हेतु झोंकने को तत्पर थे।
और वह एक ' नाजुक पल' उनके व्यथित हृदय को कमजोर कर गये।
' आज जिसकी बदौलत तू मेरे पास है'।
तेरे नाना जी ने खिड़की से नीचे झांक कर देखा,
विचित्र आवाज में आ रही चीख -पुकार सुन उनका दिल डूबने लगा था।
हिम्मत कर उन्होंने बढ़े हुए कदम खींच लिए और गठरी ला कर मेरी गोद भर दी।
सुगंधा आज मैंने यह कहानी तुम्हारे हवाले कर दी है ,
अब यह तुम्हारी जिम्मेदारी है तुम इसे किस रूप में लेती हो?
मेरी तरफ से तो इसे हवा में चारो ओर फैला देना ,
ताकि सबको पता तो चले इन आलीशान घरों के मान,सम्मान और गर्व के पीछे छिपे सच के आईने का।
सीमा वर्मा / स्वरचित
पटना