कवितालयबद्ध कविता
आओ तज कर विकृत मन को
बोध करे अंतर्मन का
बुद्ध को धारण कर लें, हो कर
कुछ प्रबुद्ध , छोड़ें जड़ता
पाप पुण्य का लेखा जोखा
काम है उपर वाले का
अंतर्दीप जलाकर देखो
दमक उठे मन का मनका
जब यह पावन जन्म मिला है
चैतन्य युवा मन कर डालो
ले बुद्ध की शिक्षा , पतित हुये के
हॄद में शुचिता भर डालो
जब सब नश्वर है , नाश करो तुम
भीतर के अंधियारे का
तन तेरा भी करे साधना
प्रस्फुट दिव्य उजाले का
देखो,जानो,सोचो ,परखो ,
धारण करने से पहले
तर्क भले लाखों भरमाये
चाहें ये भव कुछ कह ले
आओ हम सब मिलकर देखें
नव युग का निर्माण करें
दुर्गम सुगम बनाने खातिर
बुद्ध प्रबुद्ध का ध्यान धरें।